राजपक्षे के पतन का श्रीलंका के साथ चीन के निकट संबधों पर ‘‘बड़ा प्रभाव’’ पड़ेगा: विशेषज्ञ

राजपक्षे के पतन का श्रीलंका के साथ चीन के निकट संबधों पर ‘‘बड़ा प्रभाव’’ पड़ेगा: विशेषज्ञ

राजपक्षे के पतन का श्रीलंका के साथ चीन के निकट संबधों पर ‘‘बड़ा प्रभाव’’ पड़ेगा: विशेषज्ञ
Modified Date: November 29, 2022 / 08:25 pm IST
Published Date: July 12, 2022 9:10 pm IST

(के जे एम वर्मा)

बीजिंग, 12 जुलाई (भाषा) श्रीलंका में पैदा हुई आर्थिक एवं राजनीतिक अराजकता और राजपक्षे बंधुओं के पतन का चीन के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों पर ‘‘बड़ा प्रभाव’’ पड़ेगा। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है।

संकटग्रस्त राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित द्वीपीय देश में दो दशकों से अधिक समय तक बड़ी चीनी परियोजनाओं को समर्थन दिया था।

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गोटबाया के आधिकारिक आवास पर पिछले सप्ताह हजारों प्रदर्शनकारी घुस आए थे, जिसके बाद उन्हें बुधवार को अपने इस्तीफे की पेशकश करनी पड़ी।

संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने सोमवार को घोषणा की कि श्रीलंका की संसद 20 जुलाई को नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी, जो गोटबाया राजपक्षे का स्थान लेंगे। । राष्ट्रपति राजपक्षे ने अभी तक औपचारिक रूप से इस्तीफा नहीं दिया है, लेकिन उन्होंने शनिवार को अध्यक्ष को सूचित किया था कि वह 13 जुलाई को पद छोड़ देंगे। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी कहा है कि नयी सरकार बनने के बाद वह भी पद छोड़ देंगे।

शंघाई स्थित फुदान विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ लिन मिनवांग ने कहा कि राजपक्षे के बड़े भाई महिंदा ने दो महीने पहले इस्तीफा दे दिया था, ऐसे में यह संकट चीन और श्रीलंका के संबंधों को और बड़ा झटका देगा।

हांगकांग स्थित ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने मंगलवार को लिन के हवाले से कहा कि वित्तीय संकट को लेकर प्रदर्शनों के कुछ महीने बाद यह राजनीतिक संकट आया है और यह द्वीपीय राष्ट्र के साथ चीन के संबंधों के लिए एक झटका होगा।

श्रीलंका की राजनीति में करीब दो दशक तक प्रभुत्व कायम रखने वाले राजपक्षे परिवार को चीन का मित्र माना जाता है।

महिंदा के बड़े भाई जब 2005 से 2015 तक सत्ता में थे, उन्होंने हंबनटोटा बंदरगाह समेत श्रीलंका को चीनी परियोजनाओं के लिए खोल दिया था।

लिन ने कहा, ‘‘लघु अवधि में, मौजूदा घटनाक्रम का श्रीलंका के साथ चीन के संबंधों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि श्रीलंका के राजनीतिक गलियारों में राजपक्षे परिवार का प्रभाव कम हो जाएगा और निकट भविष्य में उसकी राजनीतिक वापसी की संभावना बहुत कम है।’’

उन्होंने कहा कि श्रीलंका में मौजूदा स्थिति से चीनी निवेश का नुकसान होगा।

दूसरी ओर, ‘शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज’ के एक वरिष्ठ फेलो लियू जोंगयी ने कहा कि बीजिंग ने ‘‘न केवल राजपक्षे परिवार के साथ बल्कि श्रीलंका में हर राजनीतिक दल के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए हैं। चीन का किसी एक पक्ष की ओर झुकाव नहीं रहा है। ’’

उन्होंने कहा कि दीर्घकाल में श्रीलंका के चीन से संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा।

भाषा

सिम्मी नरेश

नरेश


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