(गौरव सैनी)
बाकू (अजरबैजान), 24 नवंबर (भाषा) ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने और जलवायु अनुकूलन में ‘ग्लोबल साउथ’ की मदद के लिए यहां संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में देशों ने 300 अरब अमेरिकी डॉलर के एक नये वित्तीय पैकेज पर सहमति जताई है, लेकिन घटनाक्रम पर आ रही प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि इससे हर कोई खुश नहीं है।
‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है, जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है और ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित हैं।
‘न्यूनतम विकसित देश’ (एलडीसी) समूह के अध्यक्ष इवांस नजेवा ने नये जलवायु वित्त पैकेज को निराशाजनक करार दिया।
उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘हमने जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील लोगों को बचाने और पृथ्वी की सेहत सुधारने का मौका गंवा दिया। नये जलवायु वित्त लक्ष्य को लेकर चिंताएं बरकरार हैं। उन सभी का आभार, जो हमारे साथ खड़े रहे। हम लड़ते रहेंगे।’
अफ्रीकी वार्ताकारों के समूह (एजीएन) के अध्यक्ष ने कहा कि यह समझौता ‘कड़वे मन से’ किया गया।
नाइजीरिया की एक वार्ताकार नकिरुका मडुकेवे ने शनिवार को बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के समापन सत्र के दौरान कहा, ‘विकसित देशों का 2035 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर के साथ प्रगति करना एक मजाक है।’
उन्होंने कहा, ‘हमें इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। मुझे लगता है कि हमें इस पर पुनर्विचार करना चाहिए… एक देश के रूप में हमें यह चुनने का अधिकार है कि हम इसे लेना चाहते हैं या नहीं।’
‘टेरी एनर्जी रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ की फेलो आरआर रश्मी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि तकनीकी रूप से, किसी समझौते के खिलाफ कोई वोट न पड़ने की स्थिति में उसे अपना लिया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘यह मामला जटिल है। इसमें विभिन्न देश फैसले से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन उन पर पैकेज को अपनाने के लिए दबाव डाला गया।’
एलडीसी समूह और छोटे द्वीपीय देशों के गठजोड़ (एओएसआईएस) के वार्ताकार शनिवार शाम बैठक से बाहर चले गए, जिससे वार्ता अधर में लटक गई।
एलडीसी समूह ने कहा कि मसौदे पर उनसे सलाह नहीं ली गई और इसमें उनके लिए अलग से धन आवंटन शामिल नहीं है।
वहीं, एओएसआईएस ने एक बयान में कहा कि नजरअंदाज किए जाने पर वे अपमानित महसूस कर रहे हैं।
एलडीसी और छोटी द्वीपीय विकासशील देश (एसआईडीएस) कुल जलवायु वित्त पैकेज में से क्रमशः कम से कम 220 अरब अमेरिकी डॉलर और 39 अरब अमेरिकी डॉलर की मांग कर रहे हैं।
मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र की पूर्व उच्चायुक्त मैरी रॉबिंसन ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता लगभग विफल रही और एक निराशाजनक समझौते के साथ समाप्त हुई।
यूनियन ऑफ कंसर्नड साइंटिस्ट्स में जलवायु और ऊर्जा कार्यक्रम की नीति निदेशक राचेल क्लीटस ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन-2024 (सीओपी29) की अध्यक्षता कर रहे अजरबैजान की जलवायु वित्त वार्ता की मेजबानी के तरीके की आलोचना की।
उन्होंने कहा, ‘अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के देशों सहित अन्य अमीर देशों ने बाकू में सीओपी29 के दौरान अत्यधिक अनुचित और अपर्याप्त जलवायु वित्त पैकेज अपनाने के लिए मजबूर करने के वास्ते क्रूर शक्ति का प्रयोग किया, जो पेरिस जलवायु समझौते के विज्ञान-आधारित लक्ष्यों को खतरे में डालता है।’
क्लीटस ने कहा, ‘जलवायु संकट पैदा करने में मुख्य भूमिका के बावजूद अनिच्छुक देशों के गठबंधन ने सामूहिक रूप से 2035 तक सालाना 300 अरब अमेरिकी डॉलर की अपर्याप्त पेशकश की।’
सीओपी29 के अंतिम घंटे तनावपूर्ण रहे, जिसमें समझौते के मसौदे के साथ-साथ सम्मेलन की मेजबानी के तरीके की कड़ी आलोचना की गई।
भारत ने 300 अरब अमेरिकी डॉलर के जलवायु वित्त पैकेज पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सीओपी29 के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यालय ने उसे अपनी आपत्तियां व्यक्त करने की अनुमति देने से पहले ही समझौते को स्वीकार करने का दबाव बनाया।
भारत ने नये वित्त पैकेज को स्वीकार किए जाने की प्रक्रिया को ‘अनुचित’ और ‘सुनियोजित’ करार दिया और कहा कि यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में आपसी विश्वास की चिंताजनक कमी को दर्शाता है।
मलावी, नाइजीरिया, क्यूबा और बोलीविया ने भारत के रुख का समर्थन किया।
भाषा पारुल सुभाष
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