(माइकल रिचर्डसन और मीरू वांग, लीडेन विश्वविद्यालय)
लीडेन (नीदरलैंड), 28 सितंबर (द कन्वरसेशन) प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हर जगह मौजूद हैं: मिट्टी में जहां अनाज उगाया जाता है, पानी में जिसे हम पीते हैं और हवा में जिसे हम श्वास के रूप में लेते हैं। ये कण हमारे द्वारा फेंके गए प्लास्टिक से ‘लैंडफिल साइट’, नदियों और समुद्रों में पहुंचे हैं। वहां प्लास्टिक कचरा धीरे-धीरे विघटित होता है और इसके सूक्ष्म एवं ‘नैनो’ कण पर्यावरण में फैलते हैं।
मानव शरीर में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हमें नहीं पता कि वे वहां कैसे पहुंचे, हालांकि इसके तीन संभावित रास्ते हैं। हम खाने-पीने के दौरान प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों को अपने अंदर ले सकते हैं, या ये सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में जा सकते हैं या अपनी त्वचा के जरिए उसे सोख सकते हैं। हाल में एक अन्य मार्ग का सुझाव दिया गया है जिसके तहत प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हमारी नाक में प्रवेश करते हैं और वहां से हमारे मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं।
लंबे समय तक यह माना जाता रहा कि मानव मस्तिष्क शरीर के बाकी हिस्सों से अलग-थलग रहता है। कोशिकाओं की एक विशेष परत, मस्तिष्क को सभी प्रकार के रोगाणुओं और हानिकारक पदार्थों से बचाती है।
हालांकि अब हम जानते हैं कि रक्त-मस्तिष्क अवरोध को तोड़ा जा सकता है, क्योंकि मानव मस्तिष्क में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए हैं।
नए शोध से पता चला है कि रक्त-मस्तिष्क अवरोध में कम से कम एक संवेदनशील स्थान है, जहां से प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मस्तिष्क में प्रवेश कर सकते है। इस संभावित प्रवेश बिंदु का सुझाव फ्रेई यूनिवर्सिटेट बर्लिन और साओ पाओलो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दिया था। यह नाक में होता है, जहां विशेष तंत्रिकाएं होती हैं, जो गंध का पता लगाती हैं।
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि नाक से सांस के जरिए अंदर गए सूक्ष्म कण किसी तरह घ्राण तंत्रिकाओं के जरिए मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने साओ पाओलो के उन निवासियों के ऊतक के नमूनों का विश्लेषण करके अपने निष्कर्ष निकाले, जिनकी मौत हो चुकी थी और जिनका नियमित कोरोनर शव परीक्षण किया गया था। उन्होंने इन मस्तिष्कों से घ्राण बल्बों को निकाला और विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके उनका विश्लेषण किया।
अध्ययन किये गये 15 में से आठ मस्तिष्कों के घ्राण बल्बों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए। हालांकि इन आठ नमूनों में कुल मिलाकर केवल प्लास्टिक के 16 सूक्ष्म कण थे, जो शायद कुछ राहत देने वाली बात है।
उन 16 प्लास्टिक कणों में टुकड़े, गोले और रेशे शामिल थे और ये पॉलीप्रोपिलीन, नायलॉन और अन्य प्लास्टिक से बने थे। इनमें से कुछ रेशे कपड़ों से आए हो सकते हैं।
यह नया अध्ययन उन कई अध्ययनों में से एक है, जिसमें मानव शरीर में छोटे प्लास्टिक कणों की मौजूदगी की बात कही गई है। इनमें से ज्यादातर अध्ययन प्लास्टिक के कणों के बारे में हैं, जो पांच मिलीमीटर तक के आकार के कण होते हैं। बहुत कम अध्ययनों में मानव शरीर में ‘नैनो’ प्लास्टिक की खोज की गई है।
‘नैनो’ प्लास्टिक का आकार एक मिलीमीटर के हजारवें हिस्से से भी छोटा होता है – इतना छोटा कि विशेष उपकरणों के बिना उन्हें पहचानना कठिन होता है तथा बहुत कम वैज्ञानिकों के पास इन उपकरणों तक आसान पहुंच होती है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि ‘नैनो’ प्लास्टिक इतने छोटे होते हैं कि वे कोशिकाओं के अंदर जा सकते हैं। एक बार अंदर जाने के बाद, वे कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
हमें मानव शरीर में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों विशेष रूप से ‘नैनो’ प्लास्टिक की मौजूदगी के बारे में और अधिक जानने की आवश्यकता है।
(द कन्वरसेशन)
देवेंद्र संतोष
संतोष