(मोंटी निक्सन, शिक्षा में पीएचडी शोधार्थी, कैनबरा यूनिवर्सिटी)
कैनबरा, 28 जनवरी(भाषा) क्या आपने कभी कुछ देर रुक कर प्रकृति की आहट सुनी है? गहराई से, खामोशी से और धैर्य से?
नहीं? कोई बात नहीं, अभी भी इसे सुनने का समय बचा है। गहराई से आवाजों को सुनना एक हुनर है और इस हुनर को सीखा जा सकता है।
किसी खास प्रजाति के पक्षी की आवाज या उसका गीत कानों में पड़ना एक बात है और प्रकृति में बसी आवाजों को गहराई से, ठहरकर , शांति से सुनना एक दूसरा ही अनुभव होता है। प्रकृति की आवाजों को गहराई से सुनने का अर्थ है, बहुत सी प्रजातियों के बीच के संबंधों, उनके व्यवहार और उनके आपसी संवाद को गहराई से सुनना और उस सुने हुए से सीखना।
मूल जातीय लोग आस्ट्रेलिया और दूसरे क्षेत्रों में हजारों सालों से यह काम कर रहे हैं।
कारूलकियालु काउंटी में रहने वाले मूल जातीय लोगों के ज्ञान की रौशनी और उनकी निगरानी में मैं पीएचडी शोध कर रहा हूं। इसमें मैं उन प्रक्रियाओं के बारे में समझ रहा हूं जिनसे ये लोग प्रकृति से जुड़े हुए हैं और देख रहा हूं कि किस प्रकार गहराई से सुनने की इस मूल जातीय अवधारणा को आस्ट्रेलिया की शिक्षा व्यवस्था में समाहित किया जा सकता है।
पिछले काम पर आधारित प्रोजेक्ट ने छात्रों के परिणामों और शिक्षकों के कल्याण के संबंध में सकारात्मक नतीजे दिए हैं । इतना ही नहीं इससे प्राकृतिक जगत को समझने और उसके संरक्षण की इच्छा में वृद्धि हुई है।
क्या है गहराई से सुनना?
अगर आप गहराई से सुनने की कोशिश करना चाहते हैं तो कुछ समय निकाल कर किसी प्राकृतिक स्थल पर जाएं और एक शांत जगह तलाश लें जहां कोई आपको परेशान न करे। अपने इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों को बंद कर दें।
अपनी आंखें बंद करें और अपनी श्रवण इंद्रियों का विस्तार करते हुए अपने आसपास की आवाजें सुनें। कोशिश करें कि हर दिशा से आने वाली आवाजों पर आपका ध्यान जाए, उसके बाद ऊपर और नीचे भी। कितनी दूर तक आप सुन पा रहे हैं?
पहले आपको जीवों की अलग अलग आवाज सुनाई देगी। कुछ देर बाद, आप को संभवत: उन जीवों के बीच की आपसी बातचीत और संवाद की आवाज सुनाई देगी। उत्सुकता बनाए रखना बहुत काम आएगा। कान लगाकर सुनें कि क्या ये एक दूसरे की आवाज पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं ? कैसे और क्यों?
उस क्षण में अपने आसपास होने वाली सभी आपसी गतिविधियों को सुनने से आपको संपूर्णता में जीवन व्यवस्था को समझने में मदद मिल सकती है।
सुनने मात्र से हम प्रकृति से क्या सीख सकते हैं?
इंसान आमतौर पर सहयोग या प्रतिस्पर्धा की अवधारणा की मदद से पेचीदा संबंधों को आसान बनाते हैं।
लेकिन प्रकृति को गहराई से सुनने पर यह धारणा पुष्ट होती है कि सहभागिता युक्त साझेदारी हमारी समझ से कहीं अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। प्रजातियों के बीच एक-दूसरे की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले संबंध पूरे जीवमंडल में सर्वव्यापी हैं।
इन पक्षियों के जीवंत कलरव को सुनना – जो लगातार प्रत्येक पक्षी के स्थान का संचार और पुष्टि करता है – हमें याद दिलाता है कि सहयोग कितना लाभदायक हो सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण है कि विविधता के साथ सहयोग से सर्वाधिक फायदा होता है।
मानवता के समक्ष अस्तित्ववादी खतरों के समाधान के लिए व्यापक पैमाने पर सहयोग और समन्वय की जरूरत होगी। इनमें से बहुत से खतरे आपस में जुड़े हुए हैं। एकल समाधान का ये खतरे प्रतिरोध करते हैं और इनसे एकजुट होकर ही निपटा जा सकता है।
इसलिए हमें अपनी भिन्नताओं को स्वीकार करने और उनका उत्सव मनाने की जरूरत है। विभिन्न प्रजातियों के झुंडों का कलरव हमें याद दिलाता है कि विविधता महत्ती शक्ति का स्रोत हो सकती है।
सुनने से हमें प्रतिस्पर्धात्मक अंतःक्रियाओं के बारे में भी पता चलता है, विशेष रूप से एक ही प्रजाति के सदस्यों के बीच।
प्रजनन के मौसम में सुबह के धुंधलके में गाने वाले पक्षी भोर के समूह गान में शामिल हो जाते हैं। उनका ऐसा व्यवहार दिन या साल के किसी अन्य समय में देखने को नहीं मिलता। यह भी स्पष्ट होता है कि वे एक दूसरे की बात सुन रहे हैं।
सुनने में शिक्षा की संभावनाएं
हज़ारों सालों से ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा प्रणाली में गहन श्रवण के माध्यम से सीखना अभिन्न अंग रहा है। इस शिक्षा प्रणाली में, देश और पृथ्वी-परिजन (जैसे पौधे और जानवर) दोनों ही ज्ञान का केंद्र और शिक्षक थे। पेड़ पौधों और जानवरों से प्राप्त यह ज्ञान दादा दादी और नाना नानी ने अपने पोते पोतियों को दिया। इस प्रकार बच्चों के भीतर धरती की समझ और संरक्षण का दायित्व बोध आया।
मेरा शोध तर्क देता है कि पहले अध्यापकों को अपने भीतर गहराई से सुनने की यह क्षमता पैदा करनी होगी। और उसके बाद वो अपने ज्ञान को शिक्षण अवधारणा में प्रतिरोपित कर सकते हैं।
मंथर गति से, सूक्ष्म जागरूकता विकसित करके, जिज्ञासा के साथ, अन्य प्राणियों को सहानुभूतिपूर्वक सुनकर और भावनात्मक रूप से प्रभावित होते हुए उसका खुले दिल से स्वागत करके हम साज संभाल की अपनी गहरी भावना विकसित कर सकते हैं। अपनी व्यक्तिगत सुनने की यात्रा से, शिक्षक अपने छात्रों के लिए इन अनुभवों को सुगम बना सकते हैं।
कन्वरसेशन नरेश नरेश पवनेश
पवनेश