हर साल की तरह इस वर्ष भी खुशियां लेकर आई सांता ट्रेन

हर साल की तरह इस वर्ष भी खुशियां लेकर आई सांता ट्रेन

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  • Publish Date - November 29, 2024 / 03:40 PM IST,
    Updated On - November 29, 2024 / 03:40 PM IST

सांता ट्रेन से (अमेरिका), 29 नवंबर (एपी) वर्ष 1943 से, एपलाचियन केंटुकी, वर्जीनिया और टेनेसी के लोग सांता के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अपनी छतों पर नहीं, बल्कि ट्रेन में।

सांता ट्रेन इस वर्ष अपनी 82वीं यात्रा पर निकली है, जो सुदूर नदी घाटियों से गुजर रही सीएसएक्स रेल लाइन के 110-मील हिस्से से लगे छोटे शहरों के लिए उपहार और खुशियां लेकर आई है। ट्रेन पहुंचने से पहले शनिवार को पटरी पर कतार लगाकर सांता का इंतजार करने वाले कई बच्चे ऐसा करने वाली तीसरी, चौथी या पांचवीं पीढ़ी के बच्चे हैं।

हेसी, वर्जीनिया की सैंड्रा ओवेन्स ने कहा “मैं हर साल इसकी प्रतीक्षा करती हूं। मैं दिन गिनती हूं।

ओवेंस के हाथ में तकिए का गिलाफ है, जिसपर लिखा है, “सांता ट्रेन के लिए सीएसएक्स और स्वयंसेवकों को धन्यवाद। 82”

ओवेन्स 55 साल पहले शादी के बाद डेलावेयर से केंटुकी चली गईं थीं और उन्होंने अपनी पहली सांता ट्रेन का अनुभव कुछ साल बाद किया, जब उनका बेटा तीन साल का हो गया। वह अब 46 साल का है, और इन दिनों वह अपने पोते-पोतियों को लेकर आती हैं। कुछ और वर्षों में, शायव वह परपोते और परपोतियां लेकर आएं।

उन्होंने कहा, “बच्चों के चेहरे ही मुझे खुश कर देते हैं। आप इससे बेहतर कुछ नहीं देख सकते।”

ट्रेन शेल्बियाना, केंटुकी से शुरू होती है, जहां लोग सुबह होने से पहले इंतजार करते हैं। प्रत्येक स्टॉप पर दर्जनों से सैकड़ों लोग होते हैं। इस बीच, स्वयंसेवकों के समूह उपहारों से भरे बैग लेकर बाहर निकलते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि हर बच्चा कुछ न कुछ लेकर घर जाए। हर साल वे 15 टन से अधिक उपहार देते हैं जिनमें टोपी, दस्ताने, कंबल, बोर्ड गेम, स्केट बोर्ड और टेडी बियर शामिल हैं।

स्नोफ्लेक, वर्जीनिया की डोना डोगेट्री को याद है कि वह बचपन में पास के फोर्ट ब्लैकमोर में सांता ट्रेन देखने आती थीं।

उन्होंने कहा, “वर्षों पहले, हमें बहुत कुछ नहीं मिलता था। तो उस समय हमें जो कुछ मिलता था हमें उस पर गर्व होता था। यह हमारे लिए बहुत मायने रखता है।”

इन वर्षों में, उनके बच्चों को कई बार सांता ट्रेन से हस्तनिर्मित उपहार मिले हैं, जैसे क्रोकेटेड टोपियां, जो उनके पास अभी भी हैं और उन्हें संजोकर रखते हैं।

एपी जोहेब माधव

माधव