दोहा (कतर), सात दिसंबर (भाषा) विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को अधिक नवोन्मेषी और भागीदारीपूर्ण कूटनीति का आह्वान करते हुए कहा कि सूई रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी रहने के बजाय बातचीत की वास्तविकता की ओर बढ़ रही है।
जयशंकर ने खाड़ी और भूमध्य सागर क्षेत्र में संघर्ष की स्थिति के कारण भारत सहित सभी देशों पर तेल, उर्वरक और ‘शिपिंग’ (नौपरिवहन) आदि की लागत में वृद्धि के प्रभाव पर भी प्रकाश डाला।
जयशंकर कतर के प्रधानमंत्री एवं विदेश राज्य मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान के निमंत्रण पर दोहा फोरम में भाग लेने के लिए दोहा की यात्रा पर हैं। जयशंकर नॉर्वे के विदेश मंत्री एस्पेन बार्थ ईडे के साथ एक पैनल को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि राजनयिकों को खुद से कहना होगा, यह दुनिया अस्तव्यस्त है। यह भयानक है। संघर्ष हैं, इसलिए दुनिया के राजनयिकों के लिए आगे आने का और भी अधिक कारण है।’’
उन्होंने यह भी कहा कि 60 और 70 के दशक का वह दौर ‘‘हमारे पीछे’’ है, जब (संयुक्त राष्ट्र) सुरक्षा परिषद या कुछ पश्चिमी शक्तियां (ऐसे संघर्षों) का प्रबंधन करती थीं उन्होंने कहा कि सभी देशों को आगे बढ़ने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह, अधिक नवीन कूटनीति, अधिक भागीदारी वाली कूटनीति के लिए एक बड़ा मामला है। मुझे लगता है कि अधिक देशों को पश्चिम को दरकिनार करने का साहस दिखाने की आवश्यकता है।’’
जब प्रस्तोता ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में भारत की भूमिका के बारे में पूछा, तो जयशंकर ने कहा, ‘‘सुई युद्ध जारी रखने की तुलना में बातचीत की वास्तविकता की ओर अधिक बढ़ रही है।’’
जयशंकर ने यह समझाया कि भारत कैसे मॉस्को जाकर, राष्ट्रपति (व्लादिमीर) पुतिन से बात करके, कीव जाकर, राष्ट्रपति (वोलोदिमिर) जेलेंस्की से बातचीत करके, पारदर्शी तरीके से एक-दूसरे को संदेश देकर अपनी कही गई बात पर आगे बढ़ रहा है। जयशंकर ने कहा कि भारत ‘‘साझा सूत्र’’ खोजने की कोशिश कर रहा है, जिन्हें किसी समय पर पकड़ा जा सके।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत 125 अन्य देशों की भावनाओं और ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों को व्यक्त कर रहा है, जिन्होंने पाया है कि इस युद्ध से उनकी ईंधन लागत, उनकी खाद्य लागत, उनकी मुद्रास्फीति, उनके उर्वरक की लागत प्रभावित हुई है।
‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है, जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है। ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘और, पिछले कुछ हफ्तों और महीनों में, मैंने प्रमुख यूरोपीय नेताओं द्वारा भी इस भावना को व्यक्त करते देखा है, जो वास्तव में हमसे कह रहे हैं कि कृपया रूस और यूक्रेन के साथ बातचीत जारी रखें। इसलिए हमें लगता है कि चीजें कहीं न कहीं उस दिशा में आगे बढ़ रही हैं।’’
जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के भावी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में भी बात की।
ब्रिक्स देशों द्वारा ब्रिक्स मुद्रा पर आगे बढ़ने पर 100 प्रतिशत शुल्क लगाने के बारे में ब्रिक्स देशों को ट्रंप की हालिया चेतावनी का जिक्र करते हुए जयशंकर ने कहा, ‘मुझे ठीक से पता नहीं है कि इसके (ट्रंप की टिप्पणी) पीछे क्या कारण था, लेकिन हमने हमेशा कहा है कि भारत कभी भी ‘डी-डॉलराइजेशन’ (देशों द्वारा अमेरिकी डॉलर पर आरक्षित मुद्रा, विनिमय माध्यम के तौर पर निर्भरता कम करने) के पक्ष में नहीं रहा है। अभी, ब्रिक्स मुद्रा का कोई प्रस्ताव नहीं है।’’
उन्होंने यह भी बताया कि ब्रिक्स देशों का (ब्रिक्स मुद्रा के मुद्दे पर) रुख एक जैसा नहीं है।
रूस, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान के अमेरिका विरोधी, पश्चिम विरोधी एक धुरी बनाने में भारत की भूमिका के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा, ‘‘हर देश के अपने हित होते हैं। वे कुछ पर सहमत होते हैं, कुछ पर असहमत होते हैं। कभी-कभी एक ही देश अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग संयोजनों में काम करते हैं।’’
उन्होंने दोहा फोरम के 22वें संस्करण के हिस्से के रूप में ‘द इनोवेशन इम्परेटिव’ विषय पर एक परिचर्चा में कहा, ‘‘वास्तविकता बहुत अधिक जटिल, बहुत अधिक बारीक है।’’
इसकी वेबसाइट के अनुसार, दोहा फोरम संवाद के लिए एक वैश्विक मंच है, जो दुनिया के सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियों पर चर्चा करने और नवोन्मेषी और कार्रवाई-संचालित नेटवर्क बनाने के लिए नेताओं को एकसाथ लाता है।
दोहा फोरम ‘कूटनीति, संवाद, विविधता’ के बैनर तले, नीति निर्माण और कार्रवाई-उन्मुख सिफारिशों की दिशा में विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।
भाषा अमित दिलीप
दिलीप