(एडवर्ड एच एलिसन, लैंकेस्टर विश्वविद्यालय)
लैंकेस्टर (ब्रिटेन), तीन नवंबर (द कन्वरसेशन) वनअर्थ पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पता लगाया गया है कि समुद्री जैव विविधता संरक्षण, मानव स्वास्थ्य और कल्याण किस तरह से आपस में जुड़े हुए हैं। परिणाम बताते हैं कि समुद्री संरक्षित क्षेत्र धरती और मानव, दोनों के लिए अच्छे हो सकते हैं। महासागर के इन क्षेत्रों को सरकारों द्वारा समुद्री संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। मानवीय गतिविधियों पर रोक लगाकर उन्हें संरक्षित किया जाता है।
सरकार जब किसी समुद्री संरक्षित क्षेत्र की घोषणा कर देती है, तो आप आमतौर पर उसमें नहीं रह सकते, मछली नहीं पकड़ सकते, समुद्र तटीय रिसॉर्ट नहीं बना सकते, मछली पालन नहीं कर सकते या तेल के लिए खुदाई नहीं कर सकते। हर जगह नियम अलग-अलग होते हैं, लेकिन जरूरी यह है कि जितना संभव हो सके मानवीय गतिविधियों को सीमित कर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करने दी जाए।
संयुक्त राष्ट्र समर्थित जैव विविधता योजना (जिसका लक्ष्य 2030 तक दुनिया की 30 प्रतिशत भूमि और महासागरों की रक्षा करना है) के तहत महासागर संरक्षण का विस्तार करने की योजना के साथ, यह जानना महत्वपूर्ण है कि इसका लोगों के साथ-साथ प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
यह अध्ययन संरक्षण चैरिटी वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर, हार्वर्ड इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ और ड्यूक यूनिवर्सिटी की समुद्री प्रयोगशाला द्वारा किया गया। समुद्री संरक्षण वैज्ञानिक डैनियल वियाना के नेतृत्व में टीम ने 1973 से समुद्री संरक्षित क्षेत्रों और लोगों पर उनके प्रभावों पर लिखे गए सभी वैज्ञानिक लेखों की समीक्षा की।
उन्होंने पाया कि विश्व भर में जिन 234 समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की करीबी निगरानी की गई, उनमें से 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों में प्रकृति संरक्षण और मानव कल्याण दोनों में सुधार देखा गया।
अध्ययन में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों को शामिल किया गया है जो प्रबंधित और मछली पकड़ने की चुनिंदा गतिविधियों के माध्यम से ‘‘टिकाऊ उपयोग’’ की अनुमति देते हैं। ये मछली पकड़ने के तरीके हैं, जैसे हुक या मछली पकड़ने के जाल का उपयोग करना, जो मूंगे की चट्टानों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
समुद्र में बहुत सारे पोषक तत्व हैं?
हमारे महाद्वीप और द्वीप समुद्र, झीलों, नदियों और बाढ़ के मैदानों से घिरे हुए हैं, जहां विटामिन, खनिज और फैटी एसिड से भरपूर खाद्य पौधे और जानवर रहते हैं। जलीय खाद्य पदार्थों से मिलने वाले ये सूक्ष्म पोषक तत्व अत्यधिक जैव उपलब्ध (शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित) होते हैं। यदि इन्हें पोषण की दृष्टि से कमजोर लोगों को उपलब्ध कराया जाए, तो वे लाखों तटीय लोगों में कुपोषण को रोक सकते हैं।
जैसे-जैसे आबादी बढ़ती है, जलीय भोजन की मांग बढ़ती जाती है। जंगली फसलों को जलीय कृषि और समुद्री कृषि द्वारा पूरक बनाया जा रहा है — ये मीठे पानी और समुद्री भूमि पर फसलें उगाने और पशुधन के समकक्ष हैं। मनुष्यों द्वारा सीधे उपभोग किए जाने वाले जलीय खाद्य पदार्थों में से आधे से अधिक अब जलीय कृषि से उत्पादित होते हैं, जिनमें से अधिकांश समुद्र के बजाय अंतर्देशीय जल में उत्पादित होते हैं।
समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के जरिये कुपोषण समस्या को हल करने की कोशिश करना चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है। कई समुद्री संरक्षित क्षेत्रों का प्रबंधन प्रभावी ढंग से नहीं किया जाता है। इसके विपरीत, दुनिया भर में मत्स्य पालन से पकड़ी गईं 77 प्रतिशत मछलियां ऐसे स्थान से आती हैं जिनका प्रबंधन टिकाऊ तरीके से किया जाता है, हालांकि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उनके विस्तार की बहुत कम गुंजाइश है। जलीय कृषि ऐसा कर सकती है, लेकिन यह क्षेत्र अभी भी स्थिरता की ओर बढ़ रहा है।
समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और मत्स्य पालन के लिए जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसे कई प्रमुख खतरों से केवल स्थानीय समुद्री आवास संरक्षण द्वारा प्रभावी ढंग से नहीं निपटा जा सकता। इन चुनौतियों के बावजूद, यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि प्रकृति-मानव संबंध शोषक होने के बजाय पुनरुत्पादक हो सकते हैं।
(द कन्वरसेशन) सुभाष नेत्रपाल
नेत्रपाल