सोने के बड़े टुकडे़ कैसे तैयार होते हैं?

सोने के बड़े टुकडे़ कैसे तैयार होते हैं?

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  • Publish Date - September 3, 2024 / 04:39 PM IST,
    Updated On - September 3, 2024 / 04:39 PM IST

(क्रिस्टोफर वोइसी, मोनाश विश्वविद्यालय)

मेलबर्न, तीन सितंबर (द कन्वरसेशन) सोने के प्रति मानव जाति का आकर्षण हजारों साल पुराना है। प्राचीन यूनानी और रोमन दस्तावेज में सोने के खनन का जिक्र किया गया है। सोना पाने की चाह ने आधुनिक दुनिया को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासतौर पर 19वीं शताब्दी में।

यह ठोस, पीली धातु ज्यादातर चट्टानी खनिज क्वार्ट्ज की ‘शिराओं’ में पाई जाती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि तापमान, दबाव और रसायन विज्ञान में परिवर्तन के कारण दोनों (सोना और क्वार्ट्ज) भूमिगत गर्म तरल पदार्थों से एक साथ संघनित हो जाते हैं।

भूविज्ञानी इस प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझते हैं, लेकिन सोने के बड़े टुकड़े कैसे तैयार होते हैं, यह अब भी रहस्य का सबब बना हुआ है। सोना प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तरल पदार्थों में प्रति दस लाख में केवल एक भाग की दर से घुलता है, तो यह दसियों या यहां तक ​​कि सैकड़ों किलोग्राम वजन वाले टुकड़ों में कैसे समा जाता है?

‘नेचर जियोसाइंस’ पत्रिका में मंगलवार को प्रकाशित हमारे अनुसंधान के मुताबिक, उक्त सवाल का जवाब संभवत: क्वार्ट्ज के असमान्य विद्युत गुणों में, और भूकंप के दौरान उस पर पड़ने वाले दबाव में छिपा हुआ है।

क्वार्ट्ज पर दबाव

-क्वार्ट्ज एक ‘पीजोइलेक्ट्रिक पदार्थ’ है। ‘पीजोइलेक्ट्रिक पदार्थ’ ऐसे ठोस पदार्थ होते हैं, जो किसी भौतिक बल के उन्हें सिकोड़ने या खींचने के दौरान उन पर यांत्रिक प्रतिबल पड़ने पर विद्युत आवेश उत्पन्न करते हैं। भौतिक बल जितना तीव्र होता है, विद्युत आवेश भी उतना अधिक उत्पन्न होता है।

धरती पर इस तरह के कई पदार्थ हैं, लेकिन इनमें से क्वार्ट्ज सबसे ठोस और सर्वाधिक मात्रा में उपलब्ध है। क्वार्ट्ज का दाबविद्युतिकी (पीजोइलेक्ट्रिसिटी) गुण ही बीबीक्यू के ‘लाइटर’ में चिंगारी पैदा करता है, और ज्यादातर कलाई घड़ियों की सुइयां घूमने के लिए भी यह जिम्मेदार है।

भूकंप के दौरान पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेट में होने वाली हलचल के कारण धरती के नीचे मौजूद क्वार्ट्ज पर भारी दबाव पड़ सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर विद्युत आवेश पैदा हो सकता है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप के दौरान आकाश में चमकने वाली बिजली या रोशनी के लिए यही जिम्मेदार हो सकता है।

क्या दाबविद्युतिकी का सोने के बड़े टुकड़ों के निर्माण की प्रक्रिया से भी कोई लेना-देना हो सकता है?

पिघला हुआ सोना

-सोने के सबसे बड़े टुकड़े अक्सर उन जगहों पर पाए जाते हैं, जहां भूकंप के दौरान चट्टानों में पड़ने वाली दरारों में तरल पदार्थ बहता है। इससे क्वार्ट्ज की ‘शिराएं’ बनती हैं, जिनमें सोना हो सकता है।

सोने का बड़ा भंडार सैकड़ों या हजारों भूकंप के बाद इकट्ठा हो पाता है। इसका मतलब है कि इसके तैयार होने के लिए ‘शिराओं’ में मौजूद क्वार्ट्ज क्रिस्टल कई दौर में भारी दबाव का सामना करते हैं।

सोना जब किसी प्राकृतिक तरल पदार्थ में घुल जाता है, तो यह अक्सर अन्य अणुओं से बंध जाता है। अगर कोई चीज इन अणुओं को अस्थिर करती है, तो सोने के परमाणु इन अणुओं से बाहर निकल सकते हैं और पास की सतह पर जमा हो सकते हैं।

अणुओं को अस्थिर करने का एक उपाय उस पर ‘इलेक्ट्रॉन’ (ऋणआवेश वाला उपपरमाण्विक कण, जो या तो किसी परमाणु से बंधा हो सकता है या मुक्त हो सकता है) से प्रहार करना है। हम जानते हैं कि दबाव पड़ने पर क्वार्ट्ज में ‘इलेक्ट्रॉन’ इकट्ठा हो सकते हैं, जैसा कि भूकंप के दौरान देखने को मिलता है। लेकिन क्या क्वार्ट्ज इन ‘इलेक्ट्रॉन’ को तरल पदार्थ में घुले सोने में स्थानांतरित कर सकता है? हमें इसका पता लगाने का एक तरीका चाहिए था।

प्रयोगशाला में ‘हल्का भूकंप’

-वास्तविक भूकंप के दौरान प्रयोग करना काफी मुश्किल होता, इसलिए हमने प्रयोगशाला में भूकंप के हल्के झटके पैदा किए। हमने अपना प्रयोग भूकंप के दौरान क्वार्ट्ज क्रिस्टल को महसूस होने वाले ‘दबाव’ को दोहराने के लिहाज से किया।

इस दौरान, हमने क्वार्ट्ज क्रिस्टल को सोना युक्त तरल पदार्थ में डुबोया और फिर एक मोटर के जरिये उस (क्वार्ट्ज क्रिस्टल) पर आगे-पीछे से जबरदस्त बल लगाया। हर बार जब मोटर का अगला हिस्सा क्वार्ट्ज से टकराता, तो उसमें जबरदस्त विद्युत आवेश उत्पन्न होता।

बाद में यह देखने के लिए कि क्या क्वार्ट्ज की सतह पर कोई सोना जमा हुआ है, हमने क्वार्ट्ज के नमूने को एक ‘इलेक्ट्रॉन स्कैनिंग माइक्रोस्कोप’ के नीचे रखा। नतीजे चौंकाने वाले थे!

हमने न सिर्फ क्वार्ट्ज की सतह पर सोना जमा हुआ देखा, बल्कि उसे सूक्ष्म कणों के रूप में एक-दूसरे से जुड़ते भी पाया। इसके अलावा, हम देखा कि एक बार प्रक्रिया शुरू होने के बाद, सोने के कणों के क्वार्ट्ज के बजाय उसमें इकट्ठा होने वाले सोने के कणों के साथ एकत्रित होने की संभावना अधिक थी।

यह वास्तव में सही है, क्योंकि क्वार्ट्ज एक ‘इंसुलेटर’ (कुचालक पदार्थ, जिसमें बिजली नहीं दौड़ती) है, जबकि सोना ‘कंडक्टर’ (सुचालक पदार्थ, जिसमें बिजली आसानी से दौड़ती है) है। सोने के मौजूदा कण पास के क्वार्ट्ज से विद्युत क्षमता ग्रहण करते हैं और सोने को जमा करने वाली प्रतिक्रिया का केंद्र बन जाते हैं।

सोने की परत चढ़ाने वाले उद्योग भी इसी तर्ज पर काम करते हैं।

बड़े टुकड़ों की कहानी

-अब हम जान गए हैं कि क्वार्ट्ज और सोना किस तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। अब तक प्राप्त सोने के कई बड़े टुकड़े क्वार्ट्ज के उन टुकड़ों की ‘शिराओं’ में समाए मिले हैं, जो उन इलाकों में पाए जाते हैं, जहां भूकंप के प्रति संवेदनशील चट्टानों में पड़ी दरारों में सोना युक्त तरल पदार्थ बहते हैं।

भूकंपीय गतिविधि के दौरान, क्वार्ट्ज पर दबाव ‘पीजोइलेक्ट्रिक वोल्टेज’ उत्पन्न कर सकता है, जो इन तरल पदार्थ से सोना खींचने में सक्षम है। एक बार जमा होने के बाद, सोना आगे ‘पीजोइलेक्ट्रिक प्लेटिंग’ का केंद्र बन जाता है, क्योंकि तरल पदार्थ का प्रवाह जारी रहता है और सोने का भंडार समय के साथ बड़ा होता जाता है।

(द कन्वरसेशन) पारुल पवनेश

पवनेश