कोलंबिया में आयोजित डब्ल्यूएचओ सम्मेलन के केंद्र में घरेलू वायु प्रदूषण

कोलंबिया में आयोजित डब्ल्यूएचओ सम्मेलन के केंद्र में घरेलू वायु प्रदूषण

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  • Publish Date - March 28, 2025 / 04:44 PM IST,
    Updated On - March 28, 2025 / 04:44 PM IST

(अपर्णा बोस)

कार्टाजेना (कोलंबिया) 28 मार्च (भाषा) विश्व स्वास्थ्य संगठन के व्यावसायिक एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य सहयोग केंद्र की निदेशक कल्पना बालकृष्णन ने कहा कि जैव ईंधन से होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाना भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के लिए सबसे आसान लक्ष्य है, तथा इसे पहले से ही क्षेत्रीय प्राथमिकता में शामिल किया गया है।

कोलंबिया के कार्टाजेना में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दूसरे सम्मेलन में घरेलू वायु प्रदूषण पर चर्चा की गई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं में से एक बालकृष्णन ने कहा कि इस मुद्दे से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे के मामले में भारत की स्थिति सराहनीय है।

उन्होंने कहा, ‘‘मामूली अतिरिक्त निवेश से हम परिवेशी पीएम 2.5 के स्तर में महत्वपूर्ण कमी ला सकते हैं, साथ ही ग्रामीण आबादी द्वारा घरों में पीएम 2.5 के जोखिम को भी कम कर सकते हैं।’’

बालकृष्णन ने ‘पीटीआई-भाषा’से बातचीत में जोर दिया कि भारत में घरेलू वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं और यह काम लागत में प्रभावी तरीके से तथा सभी संभावित हितधारकों को शामिल करते हुए किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम दुनिया को दिखा सकते हैं कि हम वह सब हासिल कर सकते हैं जो कोई अन्य देश कर सकता है…बल्कि उनसे और भी बेहतर तरीके से कर सकते हैं।’’

भारत में एक स्वतंत्र थिंक टैंक ने जनवरी 2024 में रिपोर्ट दी कि भारतीय आबादी का 41 प्रतिशत हिस्सा अभी भी खाना पकाने के ईंधन के रूप में लकड़ी, गोबर या अन्य ‘बायोमास’ पर निर्भर है। यह प्रथा सालाना लगभग 34 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को पर्यावरण में उत्सर्जित करती है, जो भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 13 प्रतिशत है।

बालकृष्णन ने यह भी बताया कि घरेलू प्रदूषण का बोझ दोहरा है: ठोस ईंधन से खाना पकाने पर घर के अंदर भी प्रदूषण होता है, तथा उत्सर्जन बाहरी वातावरण में भी होता है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि खाना पकाने की स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, जो इस बदलाव का खर्च वहन नहीं कर सकते।

बालकृष्णन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘खाना पकाने में इस्तेमाल ठोस ईंधन वातावरण में पीएम 2.5 के लिए प्राथमिक योगदानकर्ता हैं। हमारे पास एलपीजी और बिजली जैसे तकनीकी समाधान हैं, लेकिन हमें अभी भी समाज के गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों की सहायता के लिए रचनात्मक आर्थिक समाधान खोजने की आवश्यकता है।’’

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की निदेशक मारिया नीरा ने कहा कि लोगों को यह समझना होगा कि वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख लोगों की मृत्यु होती है तथा यह विश्वभर में मृत्यु दर और रुग्णता दोनों के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है। उन्होंने इन मौतों के लिए बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया।

नीरा ने कार्टाजेना सम्मेलन के एक सत्र को संबोधित करते हुए दोहराया कि खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच की कमी के कारण दो अरब से अधिक लोग घरेलू वायु प्रदूषण के खतरों का सामना कर रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ निदेशक ने कहा, ‘‘वायु प्रदूषण, जो मुख्य रूप से अकुशल ऊर्जा उपयोग से उत्पन्न होता है, एक प्रमुख पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम है। वायु प्रदूषण के स्तर में कमी लाकर देश में स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, निमोनिया और अस्थमा जैसी बीमारियों की दर को कम कर सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ चिकित्सकों, वैज्ञानिकों और पत्रकारों सहित बड़ी संख्या में लोगों को अभी भी यह अहसास नहीं है कि वायु प्रदूषण के कारण हर साल लगभग 70 लाख लोगों की मृत्यु होती है।’’

बालकृष्णन ने घरेलू वायु प्रदूषण से निपटने के लिए स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में चीन की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि लगभग 20 वर्ष पहले भारत और चीन दोनों को ठोस खाना पकाने वाले ईंधन के कारण वातावरण में पीएम2.5 के स्तर में वृद्धि के कारण समान चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।

उन्होंने कहा, ‘‘चीन के लिए कोयला की वजह से और भारत के लिए यह बायोमास ईंधन की वजह से चुनौती पैदा हुई। चीन ने खाना पकाने वाले ठोस ईंधन को आक्रामक तरीके से खत्म कर दिया। यह चीन के लिए एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि कोयले का इस्तेमाल न केवल खाना पकाने के लिए बल्कि सर्दियों में कमरे को गर्म करने के लिए भी किया जाता था, जिससे पीएम 2.5 का स्तर बहुत बढ़ गया, खासकर सर्दियों में।’’

बालकृष्णन ने कहा कि चीन ने ‘‘सबसे आसान चुनौती की पहचान की और उससे निपटा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘घरों में इस्तेमाल कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना चीन के नीले आसमान कार्यक्रम का एक प्रमुख घटक था। उसने बिजली और हरित परिवहन व्यवस्था पर भी ध्यान दिया।’’

इस बीच, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में प्रदूषण नियंत्रण के लिए आवंटित 858 करोड़ रुपये की बड़ी राशि खर्च नहीं की जा सकी।

बालकृष्णन ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि एनसीएपी की कार्रवाइयों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए अतिरिक्त निगरानी में निरंतर निवेश आवश्यक है।

उन्होंने कहा, ‘‘एक बार प्रशासनिक बाधाएं दूर हो जाएं तो इसे बजटीय व्यय में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।’’

भाषा धीरज पवनेश

पवनेश

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