ढाकाः Government Imposed Curfew in Across Country भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश इन दिनों आरक्षण विरोधी आंदोलन की आग से झुलस रहा है। यह अब हिंसक रूप ले चुका है। हिंसक आंदोलनों ने पिछले 15 दिनों से वहां की पुलिस, प्रशासन और पूरी सत्ता को हिलाकर रख दिया है। बांग्लादेश में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच इस हफ्ते हुई हिंसक झड़पों में करीब 105 लोगों की मौत हो चुकी है। इसी बीच अब शेख हसीना सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू लगा दी है। बांग्लादेश में सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के महासचिव ओबैदुल कादर ने यह घोषणा की।
Government Imposed Curfew in Across Country शेख हसीना के प्रेस सचिव नईमुल इस्लाम खान ने एएफपी को बताया कि “सरकार ने कर्फ्यू लगाने और अधिकारियों की मदद के लिए सेना तैनात करने का फैसला किया है।” उन्होंने कहा कि कर्फ्यू तत्काल प्रभाव से लागू होगा। पुलिस चीफ हबीबुर रहमान ने एएफपी से कहा, “ढाका में हमने आज सभी रैलियों, जुलूसों और सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया है।” उन्होंने कहा कि “सार्वजनिक सुरक्षा” सुनिश्चित करने के लिए यह कदम जरूरी था। हालांकि रैलियों को विफल करने के मकसद से इंटरनेट बंद करने के बावजूद पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव थमने का नाम नहीं ले रहा है।
शुक्रवार को ढाका पुलिस ने कहा कि वे राजधानी में सभी सभाओं और प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। राजधानी ढाका में बृहस्पतिवार रात को इंटरनेट सेवाएं और मोबाइल डेटा व्यापक रूप से बाधित रहे और शुक्रवार को भी बंद रहे। फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया मंच भी काम नहीं कर रहे थे। शुक्रवार को इंटरनेट बाधित रहा जिसने दुनिया भर में उड़ानों, बैंक, मीडिया आउटलेट और कंपनियों को बाधित किया, लेकिन बांग्लादेश में व्यवधान अन्य जगहों की तुलना में काफी अधिक था।
बिगड़े हालात के बीच बांग्लादेश में पढ़ रहे भारतीय छात्रों (Indian students) को किसी भी उपलब्ध साधन का उपयोग करके घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया है. शुक्रवार को एक ही दिन में पूर्वोत्तर में सीमा चौकियों से 300 से अधिक छात्र भारत लौटे। बांग्लादेश में 15000 भारतीय में से 8500 छात्रों बांग्लादेश में हिंसा की स्थिति को देखते हुए वापस लाया जा रहा है।
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बता दें कि प्रदर्शनकारी 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम में लड़ने वाले नायकों के रिश्तेदारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ नौकरियों को आरक्षित करने की प्रणाली के खिलाफ कई दिनों से रैलियां कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थकों को लाभ पहुंचा रही है, जिनकी अवामी लीग पार्टी ने मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया था। छात्र चाहते हैं कि इसे योग्यता आधारित प्रणाली में तब्दील किया जाए। वहीं हसीना ने आरक्षण प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि संघर्ष में योगदान देने वालों को सम्मान मिलना चाहिए चाहे उनकी राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो।