(मैथ्यू राइट, निकोलस लीच और शिरीन एर्मिस, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय)
ऑक्सफोर्ड, 12 जनवरी (द कन्वरसेशन) साल 2024 पृथ्वी पर ज्ञात मौसम इतिहात का सबसे गर्म साल रहा। इस दौरान, अप्रैल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ ने सैकड़ों लोगों की जान ली।
वहीं, पूरे साल सूखा पड़ने से अमेजन नदी में पानी का स्तर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया जबकि, यूनान की राजधानी एथेंस में पर्यटकों को खतरनाक गर्मी से बचाने के लिए प्राधिकारियों को प्राचीन एक्रोपोलिस को दोपहर के समय में बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
यूरोपीय संघ (ईयू) की कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा की नयी रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि 2024 ज्ञात मौसम इतिहास का पहला ऐसा साल था, जब वैश्विक औसत तापमान वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस के पार चली गई।
ऑस्ट्रेलेशिया (ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, न्यू गिनी और प्रशांत महासागर में स्थित अन्य पड़ोसी द्वीप) और अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीप 2024 में ज्ञात मौसम इतिहास के सबसे गर्म साल के गवाह बने। इस दौरान, 11 महीनों तक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर से अधिक दर्ज की गई।
वैश्विक तापमान कई वर्षों से रिकॉर्ड स्तर पर है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। इससे पहले, ज्ञात मौसम इतिहात का सबसे गर्म साल होने का रिकॉर्ड 2023 के नाम दर्ज था। रिकार्ड में दर्ज 10 सर्वाधिक गर्म साल पिछले दशक में रहे हैं। लेकिन 2024 पहला ऐसा वर्ष बनकर उभरा जब वैश्विक औसत तापमान वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गई।
लगातार बढ़ती गर्मी घातक
कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के वैज्ञानिकों ने तापमान वृद्धि और चरम मौसम परिस्थितियों का अनुमान लगाने के लिए पुनर्विश्लेषण डेटा का इस्तेमाल किया। पुनर्विश्लेषण डेटा के तहत गुजरे वर्ष में दुनियाभर में मौसम की स्थिति की विस्तृत तस्वीर तैयार करने के लिए अत्याधुनिक मौसम पूर्वानुमान मॉडल के साथ ‘रियल-टाइम’ (वास्तविक समय) में उपग्रहों, मौसम केंद्रों और जहाजों सहित जितना संभव हो, उतने स्रोतों से जुटाए गए निगरानी डेटा का सहारा लिया जाता है।
यह डेटा उन प्रमुख स्रोतों में शामिल है, जिनका इस्तेमाल वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर मौसम और जलवायु का अध्ययन करने के लिए करते हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर तक सीमित रखना पेरिस जलवायु समझौते का एक प्रमुख लक्ष्य है। जलवायु परिवर्तन पर लगाम लगाने के मकसद से 2015 में हुई इस अंतरराष्ट्रीय संधि के 195 हस्ताक्षरकर्ता देशों ने औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के “प्रयास जारी रखने” का संकल्प लिया था।
वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस के पार चला जाना एक बड़ा घटनाक्रम है, लेकिन इसका सिर्फ एक साल उक्त सीमा से अधिक हो जाना पेरिस समझौते के तहत निर्धारित सीमा को लांघने के समान नहीं माना जाएगा।
मौसम में साल दर साल होने वाले उतार-चढ़ाव का मतलब यह है कि अगर किसी एक वर्ष में वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस के पार चली भी जाती है, तो भी लंबी अवधि की औसत वृद्धि इस स्तर से कम ही होगी। मौजूदा समय में लंबी अवधि की औसत तापमान वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तर से लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस अधिक है।
साल 2024 में वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिए मजबूत अल-नीनो सहित अन्य प्राकृतिक कारक जिम्मेदार थे। अल-नीनो वैश्विक स्तर पर मौसम का मिजाज प्रभावित करने वाली एक जलवायु घटना है, जिससे उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र का तापमान बढ़ जाता है।
अल-नीनो औसत वैश्विक तापमान में इजाफा करने के साथ ही दुनिया के कुछ हिस्सों में चरम मौसमी घटनाओं की आशंका बढ़ा सकती है। इन प्राकृतिक कारकों ने 2024 में भले ही मानव-जनित जलवायु परिवर्तन को बढ़ाया, लेकिन कई अन्य वर्षों में ये पृथ्वी को ठंडा करने और तापमान वृद्धि में कमी लाने के लिए जानी जाती हैं।
नीति निर्माताओं का जोर लक्ष्य निर्धारित करने पर होता है, लेकिन उन्हें ऐसे लक्ष्य तय करने से बचना चाहिए, जिन्हें हासिल करना वैज्ञानिक रूप से संभव न हो। शोध से पता चला है कि ग्रीनलैंड में बर्फीली चट्टानों के तेजी से और अपरिवर्तनीय रूप से पिघलने जैसे विनाशकारी प्रभाव उस सूरत में भी और तीव्र होने लगते हैं जब ग्लोबल वॉर्मिंग में मामूली वृद्धि होती है। सरल भाषा में कहें तो, वैश्विक तापमान में एक डिग्री के 10वें हिस्से जितनी बढ़ोतरी भी मायने रखती है।
अप्रत्याशित चरम मौसमी घटनाएं
-वैश्विक जलवायु परिवर्तन से क्षेत्रीय जलवायु और मौसम में आने वाले बदलावों से अंतत: मानव जाति और पारिस्थितिक तंत्र भी प्रभावित होते हैं। वैश्विक जलवायु और तापमान के बीच संबंध अरेखीय हैं यानी परिणाम संबंधित कारकों के समानुपाती नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि ग्लोबल वॉर्मिंग में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देशों में भीषण लू चलने का कारण बन सकती है, जो वैश्विक तापमान में औसत वृद्धि से कहीं ज्यादा गर्म होती है।
यूरोप के लिए 2024 ज्ञात मौसम इतिहास का सबसे गर्म साल रहा। इस दौरान, दक्षिणी और पूर्वी यूरोप में लोगों को खासतौर पर भीषण लू का प्रकोप झेलना पड़ा। यूनान और बाल्कन के कुछ हिस्सों में जंगलों में लगी भीषण आग से बड़ी संख्या में देवदार के पेड़ और घर जल गए।
नयी रिपोर्ट से पता चलता है कि 10 जुलाई 2024 को दुनिया का 44 फीसदी हिस्सा भीषण या तीव्र गर्मी की चपेट में रहा, जो औसत वार्षिक अधिकतम से पांच प्रतिशत ज्यादा है।
भीषण गर्मी से खासतौर पर कम आय वाले देशों में लोगों के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव और अत्यधिक मौतें देखने को मिल सकती हैं।
रिपोर्ट में इस बात पर भी रोशनी डाली गई है कि 2024 में वायुमंडल में नमी का स्तर (बारिश) हाल के वर्षों के औसत से फीसदी ज्यादा था। गर्म हवा अधिक नमी कैद करने में सक्षम है और जल वाष्प एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो वायुमंडल में तापमान बढ़ने का कारण बन सकता है।
ज्यादा चिंता की बात यह है कि अधिक नमी के कारण भारी बारिश की घटनाएं और तीव्र हो सकती हैं। 2024 में कई क्षेत्रों को विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ा, जिनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और स्पेन आदि शामिल हैं।
यह सुनिश्चित करने के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग लंबे समय तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तेजी से कम करने की आवश्यकता है।
(द कन्वरसेशन) पारुल नरेश
नरेश