बीजिंग, 22 जनवरी (एपी) अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पदासीन होने के साथ ही, जो बाइडन के समय में अमेरिका के सहयोगी रहे जापान और भारत जैसे देशों के साथ चीन के संबंध बेहतर होने शुरू हो गए हैं।
वाशिंगटन में सोमवार को हुआ नेतृत्व परिवर्तन चीन के लिए एक अवसर हो सकता है, जिसने लंबे समय से अपने बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की “समान विचारधारा वाले देशों” के साथ साझेदारी बनाने की रणनीति के खिलाफ आवाज उठाई थी।
बाइडन ने ‘क्वाड’ नामक समूह को फिर से मजबूत किया जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं। अमेरिका के इन तीनों साझेदारों के साथ चीन के संबंध बेहतर हो रहे हैं, जैसे कि ब्रिटेन के साथ उसके संबंध हैं।
बाइडन की इस विरासत के स्थायित्व पर सवाल पैदा हो गया है। अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने पारंपरिक अमेरिकी भागीदारों को चुनौती देने में संकोच नहीं किया था।
शंघाई में फुडन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के डीन वू शिनबो ने कहा, “यह संभव है कि ट्रंप अमेरिकी सहयोगियों से अलग हो जाएं, जिससे वे चीन की भूमिका पर अधिक ध्यान देंगे और वास्तव में इसने चीन की कूटनीति को एक मौका दिया है।”
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हमें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।”
लेकिन अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ब्रायन ह्यूजेस ने कहा कि ट्रंप के पास ‘चीन के साथ अधिक प्रतिस्पर्धी रुख की ओर दुनिया को एकजुट करने का रिकॉर्ड है।’
ट्रंप ने एक स्वतंत्र और खुली हिंद-प्रशांत रणनीति पर सहमति व्यक्त की थी जिसे जापान ने उनके पहले कार्यकाल के दौरान पेश किया था।
मंगलवार को विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने – शपथ लेने के कुछ घंटे बाद – वाशिंगटन में ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के विदेश मंत्रियों से मुलाकात की। यह एक ऐसा कदम है जिससे पता चलता है कि क्वाड देशों के साथ मिलकर काम करना और चीन के प्रभाव का मुकाबला करना ट्रंप के लिए प्राथमिकता बना रहेगा।
ब्रिटेन और जापान के साथ बीजिंग का मेल-मिलाप अभी शुरुआती चरण में है, तथा बड़े मतभेद अभी भी बने हुए हैं, जो इसे पटरी से उतार सकते हैं।
भारत ने पिछले अक्टूबर में चीन के साथ कटु सीमा विवाद पर बातचीत शुरू की थी, लेकिन जब बीजिंग ने दोनों देशों के दावे वाले क्षेत्र में दो नए काउंटी बनाए तो भारत ने इसका विरोध किया था।
फिर भी, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और जापान के नए नेताओं ने दुनिया के सबसे बड़े निर्माता और रणनीतिक खनिजों के स्रोत चीन के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की इच्छा दिखाई है।
बीजिंग सरकार ने इस पर आंशिक रूप से प्रतिक्रिया व्यक्त की है क्योंकि वह अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए विदेशी निवेश चाहती है। उसे आशंका है कि यदि ट्रंप उच्च शुल्क लगाने की अपनी धमकी पर अमल करते हैं तो उसकी अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है।
एपी वैभव नरेश
नरेश