(गौरव सैनी)
बाकू (अजरबैजान), 20 नवंबर (भाषा) भारत ने विकसित देशों से विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन के लिए वित्तीय सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया और कहा कि चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती संख्या एवं तीव्रता लोगों के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है, खास तौर पर गरीब देशों में।
जलवायु अनुकूलन पर मंगलवार को एक मंत्रिस्तरीय संवाद में भारत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अधिक सामना कर रहे हैं, जो काफी हद तक विकसित देशों में ऐतिहासिक रूप से बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का नतीजा है।
भारतीय वार्ताकार राजश्री रे ने कहा, “चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती संख्या और तीव्रता विकासशील देशों के लोगों के जीवन और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, जिससे उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।”
भारत ने याद दिलाया कि पिछले साल संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी28) में वैश्विक जलवायु लचीलेपन के लिए अपनाई गई यूएई रूपरेखा विकसित देशों के आर्थिक सहयोग बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर देती है।
रे ने कहा, “यह पहल आगे बढ़नी चाहिए और इसके तहत देशों की उभरती जरूरतों और अद्वितीय परिस्थितियों का सम्मान करते हुए उन पर आधारित रणनीतियों का समर्थन किया जाना चाहिए।”
भारत ने कहा कि मौजूदा वित्तीय तंत्र के तहत जलवायु अनुकूलन निधि का धीमा वितरण उन प्रमुख चुनौतियों में शामिल है, जो विकासशील देशों की लगातार गर्म होती दुनिया के अनुकूल ढलने में मदद करने के आड़े आ रहा है।
रे ने कहा, “कड़े पात्रता मानदंडों के साथ लंबी, जटिल अनुमोदन प्रक्रियाएं विकासशील देशों के लिए अनुकूलन वित्त हासिल करना मुश्किल बना देती हैं।”
भारत ने वर्ष 2025 के बाद जलवायु अनुकूलन के लिए एक महत्वाकांक्षी वित्तीय रूपरेखा बनाने का आह्वान किया। उसने कहा कि विकासशील देशों के लिए नये जलवायु वित्त पैकेज में पर्याप्त अनुदान और रियायती वित्त शामिल होना चाहिए।
भारत ने जलवायु अनुकूलन की दिशा में अपने प्रयास साझा किए और कहा कि अब तक का वित्तीय समर्थन बहुत हद तक घरेलू संसाधनों से आया है।
रे ने कहा, “हम अपनी राष्ट्रीय अनुकूलन योजना तैयार करने की प्रक्रिया में हैं। पिछले साल यूएनएफसीसीसी (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन) को हमारे प्रारंभिक अनुकूलन संचार में हमने जलवायु अनुकूलन के लिए 850 अरब अमेरिकी डॉलर तक की पूंजी आवश्यकताओं का अनुमान जताया था।”
भाषा पारुल मनीषा
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