जलवायु परिवर्तन का अर्थ है कि हमें आक्रामक प्रजातियों के साथ रहना सीखना होगा

जलवायु परिवर्तन का अर्थ है कि हमें आक्रामक प्रजातियों के साथ रहना सीखना होगा

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  • Publish Date - September 22, 2024 / 04:33 PM IST,
    Updated On - September 22, 2024 / 04:33 PM IST

(हीदर खारूबा, ओटावा विश्वविद्यालय)

ओटावा, 22 सितंबर (द कन्वरसेशन) आक्रामक या गैर-स्वदेशी प्रजातियों को अकसर संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। गैर-स्वदेशी ‘‘खरपतवारों’’ से लेकर कीटों और जलीय जीवों तक तथा बाहर से लाई गई (या गैर-स्वदेशी) प्रजातियों को खराब समझा जाता है और इसके परिणामस्वरूप अकसर उनका कुप्रबंधन होता है।

स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो, जानबूझकर या अनजाने में लाई गई ज्यादातर प्रजातियां स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा नहीं हैं। सरकारें और संरक्षण संगठन इन प्रजातियों के नियंत्रण पर अपना बहुत सारा समय और धन खर्च करते हैं। फिर भी, ज्यादातर विदेशी प्रजातियों को हटाने के प्रयास प्रभावहीन, समय लेने वाले और आमतौर पर दीर्घावधि में असफल होते हैं।

निश्चित रूप से, कुछ आक्रामक प्रजातियां जैसे जेबरा मसल्स या एमराल्ड ऐश बोरर – मूल निवासों के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं और उनके प्रसार को नियंत्रित करने के प्रयास जारी हैं।

ज्यादातर प्रचलित प्रजातियां हालांकि देशी पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करती हैं और कुछ मामलों में तो नए लाभ भी प्रदान कर सकती हैं।

समकालीन संरक्षण कवायद जटिल है और प्रचलित प्रजातियों के प्रति पक्षपातपूर्ण है, तथा पारिस्थितिकी तंत्र को यथावत बनाए रखने पर ध्यान केन्द्रित करता है। यह नीति भले ही अच्छे इरादे से अपनाई गई हो, हमें उन सकारात्मक भूमिकाओं को कम आंकने के लिए प्रेरित कर रहा है जो बाहर से लाई गई प्रजातियां पारिस्थितिकी तंत्र का लचीलापन बनाए रखने में निभा सकती हैं।

सबसे बुरी स्थिति में, इन नीतियों के हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं। इसके अलावा, कुछ आक्रामक प्रजातियां वायु और जल को प्रदूषकों से मुक्त करने में मदद करके स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की सहायता कर सकती हैं।

बढ़ते प्रमाण बताते हैं कि कुछ विदेशी प्रजातियां उस क्षेत्र के मूल पौधों की तुलना में कुछ प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में अधिक सक्षम हो सकती हैं।

वास्तविकता यह है कि पारिस्थितिकी समुदायों में बाहर से लाए गए पौधों की भूमिका जटिल है और बदलती जलवायु परिस्थिति में, हमें अपने परिदृश्यों में बाहर से लाए गए पौधों के पूर्ण उन्मूलन पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

इस चुनौती से निपटने के लिए, वैज्ञानिकों को उन मामलों को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता है, जहां बाहर से लाए गए पौधे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान करने की क्षमता रखते हैं।

नियमित अध्ययन, निगरानी और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र-व्यापी दृष्टिकोण के माध्यम से, हम प्राथमिकता तय कर सकते हैं कि हमें किन पौधों को हटाने की कोशिश करनी है और किन्हें हम छोड़ सकते हैं। क्या किसी विशेष मामले में देशी (या बाहर से लाई गई) प्रजातियों के पूरक को शामिल करने की आवश्यकता हो सकती है।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि बाहर से लाए गए पौधों का हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। न ही हमें कुछ प्रजातियों के कारण उत्पन्न गंभीर समस्याओं को कम करने के अपने प्रयासों को छोड़ देना चाहिए, या सरकारों को संभावित रूप से हानिकारक प्रजातियों को अपने अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने के प्रयास बंद कर देने चाहिए।

इसके बजाय, मैं संरक्षणकर्ताओं और नीति निर्माताओं से आग्रह करता हूं कि वे प्रजातियों की उत्पत्ति के बजाय, पारिस्थितिकी समुदाय के लिए किसी प्रजाति से होने वाले फायदों और नुकसान के आधार पर आवासों के प्रबंधन को प्राथमिकता दें।

इस बदलते मौसम में, हमें जैविक विविधता के बारे में अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जिसमें सभी प्रजातियां शामिल हों।

(द कन्वरसेशन) देवेंद्र नेत्रपाल

नेत्रपाल