(एलन वेल्टी, स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन)
वाशिंगटन, 26 दिसंबर (द कन्वरसेशन) भंवरे से लेकर खरगोश तक, गायों से लेकर हाथियों तक, धरती पर मौजूद एक-तिहाई से अधिक प्राणी वनस्पति-आधारित आहार पर निर्भर हैं। चूंकि, पौधे कम कैलोरी वाले खाद्य स्रोत हैं, इसलिए जानवरों के लिए उनसे अपनी जरूरत के मुताबिक ऊर्जा हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। और अब जलवायु परिवर्तन से वनस्पति-आधारित आहार के पौष्टिक गुण प्रभावित होने की बात सामने आई है।
मानव गतिविधियां वायु मंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ा रही हैं, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। नतीजतन, दुनियाभर के पारिस्थितिक तंत्र में कई पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं।
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि “पृथ्वी की यह हरियाली” पौधों में अधिक कार्बन का भंडारण करके ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में आंशिक रूप से कमी ला सकती है। हालांकि, इसका एक नुकसान भी है। तेजी से विकसित होने वाले पौधों में पौष्टिक गुण कम हो सकते हैं।
मैं एक पारिस्थितिकीविज्ञानी हूं और सहकर्मियों के साथ यह पता लगाने की दिशा में काम करता हूं कि पोषक तत्वों में कमी वनस्पति-आधारित आहार पर निर्भर जीवों को कैसे प्रभावित कर सकती है। हमने छोटे टिड्डों से लेकर विशाल पांडा तक, वनस्पति-आधारित आहार पर निर्भर विभिन्न जीवों पर इसका प्रभाव आंका।
हमारा मानना है कि पौधों के पोषक गुणों में दीर्घकालिक परिवर्तन जानवरों की आबादी घटने का एक बड़ा कारण हो सकता है। हालांकि, पौधों के पौष्टिक गुणों में कमी का असर समुद्र के बढ़ते तापमान की तरह स्पष्ट रूप से नहीं दिखता, और न ही यह चक्रवाती तूफान की तरह अचानक होता है, लेकिन समय बीतने के साथ इसका व्यापक प्रभाव नजर आने लगता है।
सामान्य आहार के कम पौष्टिक होने पर पौधों पर निर्भर जानवरों को भोजन ढूंढने और उसका सेवन करने के लिए अतिरिक्त समय की जरूरत पड़ सकती है, जिससे उनके शिकारियों का शिकार बनने का जोखिम बढ़ जाता है। यही नहीं, पौष्टिक तत्वों में कमी से जानवर कमजोर हो सकते हैं और उनकी प्रजनन क्षमता भी घट सकती है।
बढ़ता कार्बन, घटता पोषण
-विभिन्न अध्ययन से पहले ही साबित हो चुका है कि जलवायु परिवर्तन से फसलों के पौष्टिक गुणों में कमी आ रही है। शारीरिक एवं मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रोन्यूट्रिएंट), मसलन-कॉपर, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक के स्तर में कमी खासतौर पर चिंता का विषय है।
वायु मंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में इजाफे से आने वाले दशकों में मानव शरीर में आयरन, जिंक और प्रोटीन की कमी बढ़ सकती है। पूर्वी और मध्य एशिया सहित अन्य क्षेत्रों में गेहूं तथा चावल पर अत्यधिक निर्भर मनुष्यों के स्वास्थ्य एवं अस्तित्व पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ने का अनुमान है।
मवेशियों के चारे में भी पोषक तत्वों के स्तर में कमी आ रही है। इससे न सिर्फ उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि पशु पालकों की आमदनी भी घट रही है।
जगली जानवर भी अछूते नहीं
-जलवायु परिवर्तन के कारण जंगली जानवर भी पोषक तत्वों की कमी से जूझ रहे हैं। मिसाल के तौर पर पांडा को ही ले लीजिए, जिनकी प्रजनन दर बहुत धीमी है और जिन्हें निवास स्थान के रूप में बांस के बड़े, जुड़े हुए झुंड की आवश्यकता होती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण न सिर्फ बांस के पौष्टिक गुणों में कमी आ रही है, बल्कि उसके लिए अपना अस्तित्व बनाए रखना भी मुश्किल हो गया है। इससे कृषि और विकास गतिविधियों के लिए भूउपयोग में बदलाव के कारण पहले से ही संकटग्रस्ट पांडा के विलुप्तिकरण का खतरा और बढ़ गया है।
कीट-पतंगों के अस्तित्व पर खतरा
-कीट-पतंगे न सिर्फ पराग कणों के छिड़काव के लिए अहम माने जाते हैं, बल्कि कई जीवों के लिए आहार के रूप में भी काम कर करते हैं। ज्यादातर कीड़े पौधा-आधारित आहार लेते हैं। विभिन्न अध्ययनों में देखा गया है कि कार्बन उत्सर्जन का स्तर बढ़ने पर कीट-पतंगों की आबादी घटने लगती है, जिसके लिए बहुत हद तक पौधों के पौष्टिक गुणों में आने वाली कमी जिम्मेदार होती है।
किन क्षेत्रों में ज्यादा प्रभाव
-पौधों के पौष्टिक गुणों में गिरावट का सबसे ज्यादा असर उन जगहों पर पड़ने की आशंका है, जहां पोषक तत्व पहले से ही बहुत कम हैं और जानवर अब अपनी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन जगहों में ऑस्ट्रेलिया के अलावा अमेजन और कांगो घाटी जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र शामिल हैं।
(द कन्वरसेशन) पारुल माधव
माधव