(लैडेन हाशमी, ऑकलैंड यूनिवर्सिटी में स्वास्थ्य विज्ञान के वरिष्ठ रिसर्च फेलो, वाईपापा टौमाटा राउ)
ऑकलैंड, 14 जनवरी (द कन्वरसेशन) अपने शुरुआती जीवन में दर्दनाक अनुभवों वाले बच्चों में मोटापे का जोखिम अधिक होता है, लेकिन हमारे नए शोध से पता चलता है कि सकारात्मक अनुभवों के माध्यम से इस जोखिम को कम किया जा सकता है।
बचपन में दर्दनाक अनुभव चिंताजनक रूप से आम हैं। ‘ग्रोइंग अप इन न्यूज़ीलैंड’ अध्ययन में लगभग 5,000 बच्चों के डेटा के हमारे विश्लेषण से पता चला कि 87 प्रतिशत बच्चों (लगभग 10 में से नौ) को आठ साल की उम्र तक कम से कम एक महत्वपूर्ण आघात का सामना करना पड़ा।
कई प्रतिकूल अनुभव भी थे। बत्तीस फीसदी बच्चों (करीब तीन में से एक) ने कम से कम तीन दर्दनाक घटनाओं का अनुभव किया।
बचपन के आघात में शारीरिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार, साथियों द्वारा धमकाया जाना और घरेलू हिंसा के संपर्क में आना जैसे कई अनुभव शामिल हैं। इसमें माता-पिता द्वारा मादक द्रव्यों का सेवन, मानसिक बीमारी, कारावास, अलगाव या तलाक और जातीय भेदभाव भी शामिल हैं।
इन अनुभवों के परिणाम दूरगामी थे। जिन बच्चों ने कम से कम एक प्रतिकूल घटना का अनुभव किया, उनमें आठ वर्ष की आयु तक मोटे होने की संभावना दोगुनी थी। दर्दनाक अनुभवों की संख्या के साथ यह जोखिम बढ़ता गया। चार या अधिक प्रतिकूल अनुभव वाले बच्चों में मोटे होने की संभावना लगभग तीन गुना अधिक थी।
उल्लेखनीय रूप से, कुछ दर्दनाक अनुभव (शारीरिक दुर्व्यवहार और माता-पिता की घरेलू हिंसा सहित) मोटापे से दूसरों की तुलना में अधिक मजबूती से जुड़े हुए हैं। यह प्रारंभिक जीवन की प्रतिकूलताओं और शारीरिक स्वास्थ्य परिणामों के बीच मजबूत संबंध को उजागर करता है।
आघात का मोटापे से संबंध
एक संभावित व्याख्या यह हो सकती है कि बच्चों के परिवार, स्कूल और सामाजिक वातावरण में शुरुआती तनाव का संचय अधिक मनोवैज्ञानिक संकट से जुड़ा हुआ है। इससे बच्चों द्वारा अस्वास्थ्यकर वजन-संबंधी व्यवहार अपनाने की अधिक संभावना होती है। इसमें फास्ट फूड और शर्करा युक्त पेय जैसे अत्यधिक उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन, पौष्टिक खाद्य पदार्थों का अपर्याप्त सेवन, खराब नींद, अत्यधिक स्क्रीन समय और शारीरिक निष्क्रियता शामिल है।
हमारे शोध में, जिन बच्चों ने प्रतिकूल घटनाओं का अनुभव किया, उनमें इन अस्वास्थ्यकर व्यवहारों को अपनाने की अधिक संभावना थी, यानी इनमें मोटापे का उच्च जोखिम था।
इन चुनौतियों के बावजूद, हमारे शोध ने एक आशाजनक क्षेत्र की भी खोज की : सकारात्मक अनुभवों के सुरक्षात्मक और शमनकारी प्रभाव।
हमने सकारात्मक अनुभवों को इस प्रकार परिभाषित किया है:
– प्रतिबद्ध रिश्ते में माता-पिता
– माताओं का अपने बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करना
– सामाजिक समूहों में शामिल माताएं
– बच्चे पुस्तकालयों या संग्रहालयों में जाने और खेलकूद और सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग लेने जैसे समृद्ध अनुभवों और गतिविधियों में लगे हुए हैं
– ऐसे घरों में रहने वाले बच्चे जिनकी दिनचर्या और नियम हैं, जिनमें सोने का समय, स्क्रीन टाइम और भोजन का समय शामिल है
– प्रभावी बचपन की शिक्षा में भाग लेने वाले बच्चे।
निष्कर्ष उत्साहजनक थे। जिन बच्चों को ज़्यादा सकारात्मक अनुभव हुए, उनमें आठ साल की उम्र तक मोटे होने की संभावना काफी कम थी।
उदाहरण के लिए, जिन बच्चों को पांच या छह सकारात्मक अनुभव हुए, उनमें शून्य या एक सकारात्मक अनुभव वाले बच्चों की तुलना में ज़्यादा वज़न या मोटापे की संभावना 60 फीसदी कम थी। दो सकारात्मक अनुभवों ने भी मोटापे की संभावना को 25 फीसदी तक कम कर दिया।
सकारात्मक अनुभव आघात का प्रतिकार कैसे करते हैं
सकारात्मक अनुभव बचपन के आघात के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं, लेकिन प्रतिकूल घटनाओं के प्रभाव को महत्वपूर्ण रूप से कम करने के लिए कम से कम चार सकारात्मक अनुभवों की आवश्यकता थी। जबकि अध्ययन प्रतिभागियों में से लगभग आधे (48 फीसदी) के पास कम से कम चार सकारात्मक अनुभव थे, एक चिंताजनक अनुपात (दस बच्चों में से एक से अधिक) ने शून्य या केवल एक सकारात्मक अनुभव की सूचना दी।
निहितार्थ स्पष्ट हैं। केवल व्यवहार बदलने पर केंद्रित, वजन घटाने के पारंपरिक कार्यक्रम बचपन के मोटापे से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। स्थायी परिवर्तन लाने के लिए, हमें बच्चों के जीवन को आकार देने वाले सामाजिक वातावरण, जीवन के अनुभवों और शुरुआती आघात के भावनात्मक घावों को भी ध्यान में रखना होगा।
सकारात्मक अनुभवों को बढ़ावा देना इस समग्र दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये अनुभव न केवल बच्चों को प्रतिकूल परिस्थितियों के हानिकारक प्रभावों से बचाने में मदद करते हैं, बल्कि उनके समग्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देते हैं। यह केवल मोटापे को रोकने के बारे में नहीं है- यह बच्चों को पनपने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए आधार प्रदान करने के बारे में है।
( द कन्वरसेशन ) मनीषा सुरेश
सुरेश