(गौरव सैनी)
बाकू (अजरबैजान), 21 नवंबर (भाषा) भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त से ध्यान हटाकर ‘ग्लोबल साउथ’ में उत्सर्जन में कमी लाने पर ध्यान केंद्रित करने के विकसित देशों के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं करेगा।
‘ग्लोबल साउथ’ का संदर्भ आर्थिक रूप से कमजोर या विकासशील देशों के लिए दिया जाता है।
भारत ने कहा कि वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण के संदर्भ में पर्याप्त सहयोग के बिना जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
बृहस्पतिवार को जारी नए जलवायु वित्त लक्ष्य के मसौदा पाठ पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत की पर्यावरण एवं जलवायु सचिव लीना नंदन ने कहा कि ऐसे समय में जब पर्याप्त वित्त के माध्यम से उत्सर्जन घटाने के कार्यों के लिए पूर्ण सहयोग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, फोकस में बदलाव निराशाजनक है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम एक के बाद एक सीओपी में उत्सर्जन घटाने की महत्वाकांक्षाओं पर, क्या किया जाना है इस बारे बात करते रहते हैं, लेकिन इस पर बात नहीं कर रहे कि इसे कैसे किया जाना है। इस सीओपी की शुरुआत एक नए जलवायु वित्त लक्ष्य (एनसीक्यूजी) के माध्यम से सक्षमता पर ध्यान केंद्रित करने के साथ हुई, लेकिन जैसे-जैसे हम अंत की ओर बढ़ते हैं, हम देख रह हैं कि ध्यान उत्सर्जन घटाने पर स्थानांतरित हो रहा है।’’
बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहीं नंदन ने कहा कि भारत वित्त से ध्यान हटाकर ‘‘उत्सर्जन घटाने पर बार-बार जोर’’ देने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ पक्षों द्वारा उत्सर्जन घटाने के बारे में बात करने का प्रयास मुख्य रूप से वित्त प्रदान करने की उनकी जिम्मेदारियों से ध्यान हटाने का एक प्रयास है।’’
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के अनुसार, उच्च आय वाले औद्योगिक राष्ट्र, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान दिया है, विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने और उसके अनुकूल ढलने में मदद करने के लिए वित्त और प्रौद्योगिकी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार हैं।
इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जर्मनी तथा फ्रांस जैसे यूरोपीय संघ के सदस्य देश शामिल हैं। सीओपी29 में, इन देशों ने विकासशील देशों पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में और अधिक कटौती करने के लिए दबाव डालने का प्रयास किया है, जबकि वार्ता के केंद्रीय मुद्दे वित्त पर ध्यान नहीं दिया गया है।
पर्यावरण सचिव ने कहा, ‘‘नए एनडीसी को तैयार करने और लागू करने के लिए वित्त सबसे महत्वपूर्ण साधन है।’’
उन्होंने देशों को याद दिलाया कि सीओपी29 में लिए गए निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) या राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों के अगले दौर को प्रभावित करेंगे। देशों को फरवरी 2025 तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यालय के समक्ष इसे प्रस्तुत करना होगा।
भाषा आशीष पवनेश
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