(एलेक्स हॉल, अनुसंधानकर्ता, रॉयल सोसाइटी यूनिवर्सिटी, स्कूल ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग)
एडिनबर्ग, 21 सितंबर (द कन्वरसेशन) वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्मांड के फैलने की खोज किए हुए करीब 100 साल पूरे हो गए हैं। इसके बाद के दशकों में, माप की सटीकता, और इस खोज की व्याख्याएं और निहितार्थ को लेकर बहस हुई। अब हम जानते हैं कि ब्रह्मांड बिग बैंग नामक घटना में अत्यधिक संपीड़ित अवस्था से नाटकीय रूप से उभरा।
वर्तमान विस्तार दर के मापन को हबल कांस्टेंट या एच जीरो (उच्चारण एच-नॉट) के रूप में जाना जाता है। इसमें शुरुआती दिनों के मुकाबले काफी सुधार आया है। हालांकि, अब खगोल वैज्ञानिकों के बीच एक नयी बहस छिड़ गई है; एचजीरो के दो स्वतंत्र माप, जिन पर सहमति होनी चाहिए, अलग-अलग परिणाम देते हैं। इस स्थिति को ‘एचजीरो टेंशन’ या हब्बल टेंशन के नाम से जाना जाता है।
इस मुद्दे पर कई सम्मेलन किए गए हैं, समीक्षा लेख या पत्रिका में अनुसंधान पत्र प्राकशित किए गए हैं। कुछ इसे ब्रह्मांड विज्ञान के लिए ‘संकट’ के रूप में उल्लेख करते हैं, जिसके लिए ब्रह्मांड की हमारी समझ में एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता है। ब्रह्मांड का विस्तार ‘बिग बैंग’ के बाद से इसके इतिहास का एक प्रमुख पहलू है, इसलिए यह हमारी समझ के कई अन्य तत्वों को रेखांकित करता है।
अन्य लोग एचजीरो तनाव को केवल एक संकेत के रूप में देखते हैं कि माप दल उनके डेटा को पूरी तरह से नहीं समझते हैं और बेहतर डेटा के साथ, ‘संकट’ का समाधान हो जाएगा। लेकिन इसका समाधान अभी भी अस्पष्ट है।
इस बहस के केंद्र में दो माप विधियां ‘डिस्टेंस लैडर’ और ‘कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड’ हैं। ‘डिस्टेंस लैडर’ दोनों में से सबसे पुरानी है, और ब्रह्मांड के विस्तार का प्रारंभिक पता लगाने के बाद से इसका उपयोग विभिन्न रूपों में किया गया है।
पहला सबूत धूमिल बादल जैसी वस्तुओं के अग्रणी माप से आया था जिन्हें अब हम आकाशगंगा (मिल्की वे) के बाहर की आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं। अमेरिकी खगोलशास्त्री वी.एम. स्लिफर ने इन वस्तुओं से आ रही प्रकाश में रासायनिक संकेतों को मापा।ज्ञात अणुओं के साथ इन संकेतकों का मिलान करने के लिए ‘स्पेक्ट्रोस्कोपी’ की तकनीक का उपयोग कर उन्होंने पाया कि उनकी तरंग दैर्ध्य मानक प्रयोगशाला परिणामों की तुलना में फैली हुई थी।
अन्य आकाशगंगाओं से प्रकाश की तरंग दैर्ध्य का यह खिंचाव को ‘रेडशिफ्ट’ के रूप में जाना जाता है और यह ‘डॉपलर’ प्रभाव के कारण होता है। यह घटना आपातकालीन वाहन के पास आने पर सायरन बजने की आवाज के बढ़ने और उसके गुजरने के साथ कम होने के लिए भी जिम्मेदार है। स्लिफर ने 1917 के एक मौलिक लेख में घोषणा की कि लगभग सभी आकाशगंगाएं जो उन्होंने देखी थीं, आकाशगंगा (मिल्की वे) से दूर जा रही थीं।
स्लिफर के आंकड़ों का उपयोग एडविन हबल ने अपने प्रसिद्ध 1929 के अध्ययन में किया, जिसमें दिखाया गया कि आकाशगंगा जितनी अधिक दूर होती है, वह उतनी ही तेजी से पीछे हटती है और इसलिए उसका ‘रेडशिफ्ट’ उतना ही अधिक होता है। ‘रेडशिफ्ट’ और दूरी के बीच का अनुपात ‘हबल कांस्टेंट’ है।
ब्रह्मांड के विस्तार का अनुमान सिद्धांतकारों ने पहले ही लगा लिया था। अलेक्जेंडर फ्रीडमैन और जॉर्जेस लामेत्रे ने 1920 के दशक की शुरुआत में ही स्वतंत्र रूप से महसूस किया कि अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा हाल ही में प्रकाशित सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत एक विस्तारित ब्रह्मांड की भविष्यवाणी कर सकता है, और इसके निहितार्थ आकाशगंगा ‘रेडशिफ्ट’ होंगे जो दूरी के साथ बढ़ते हैं।
डिस्टेंस लैडर
ब्रह्मांड के विस्तार के कारण दूर स्थित आकाशगंगाएं हमसे दूर जा रही हैं। हबल कांस्टेंट का मापन इन वस्तुओं की दूरी और उनके पीछे हटने की गति के बीच संबंध निर्धारित करने पर निर्भर करता है।
इसकी वजह से एचजीरो की इकाइयां पारंपरिक रूप से ‘किलोमीटर प्रति सेकंड प्रति मेगापारसेक’ होती हैं, जो एक मेगापारसेक दूर किसी वस्तु की गति (खगोलविदों द्वारा उपयोग की जाने वाली दूरी की एक इकाई, लगभग 30 लाख प्रकाश वर्ष के बराबर) का संदर्भ देती है।
स्लिफर ने जैसा कि एक सदी पहले किया था, कम होती गति को स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके आसानी से मापा जा सकता है। हालांकि, आकाशगंगाओं की सटीक दूरी मापना बेहद कठिन है, इसलिए यहीं पर ‘डिस्टेंस लैडर’आती है।
लैडर का सबसे निचला ‘पायदान’ आकाश में उन वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है जो इतनी करीब हैं कि हम दूरी मापने के लिए प्रत्यक्ष तरीकों का उपयोग कर सकते हैं जैसे कि लंबन विधि (पैरालेक्स मेथड), जहां सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की गति वस्तुओं की कोणीय स्थिति में आवधिक बदलाव करती है। बाद के पायदान वस्तुओं के उत्तरोत्तर अधिक दूर के माप का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन्हें ऐसी वस्तुओं के रूप में चुना जाता है जिनके लिए सापेक्ष दूरी को मापना आसान होता है, लेकिन बिना किसी संख्या वाले रूलर की तरह, उनकी पूर्ण दूरी को ‘कैलिब्रेट’ किया जाना चाहिए। यह आधार सबसे निचले पायदान पर स्थित वस्तुओं द्वारा प्रदान किया जाता है।
सेफिड्स उन चमकीले और विशाल तारों को कहते हैं जो स्पंदित होते हैं। विशेष रूप से उनके स्पंदन अवधि और चमक के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण पायदान के रूप में उपयोगी होते हैं। इसकी खोज 1908 में हेनरीएटा स्वान लेविट ने की थी। सबसे दूर का चरण आमतौर पर टाइप 1ए सुपरनोवा (विस्फोट जो तब होता है जब कुछ तारे अपने जीवन के अंत तक पहुंचते हैं) द्वारा बनते हैं, जिसने इस बात का निश्चित प्रमाण भी प्रदान किया है कि ब्रह्मांड के विस्तार की दर बढ़ रही है।
कॉस्मिक माइक्रोवेव
बहस के केंद्र में अन्य माप पद्धति कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (सीएमबी) है। यह तब उत्सर्जित प्रकाश है जब ब्रह्मांड केवल कुछ लाख वर्ष पुराना था और उस समय तारों या ग्रहों का निर्माण नहीं हुआ था। इसके बजाय, एक गर्म प्लाज़्मा ने पूरे स्थान को भर दिया था, ध्वनि तरंगों को छोड़कर लगभग पूरी तरह से समान, जिनके बारे में माना गया कि उनकी उत्पत्ति बिग बैंग से हुई थी।
इस समय ब्रह्मांड की भौतिकी आश्चर्यजनक रूप से सरल है, इसलिए हम इन तरंगों के गुणों के बारे में पुख्ता भविष्यवाणियां कर सकते हैं। सटीक माप के साथ जोड़ने पर, हमारे गणितीय मॉडल बताते हैं कि इस प्रारंभिक समय में ब्रह्मांड की विस्तार दर क्या थी। विस्तार इतिहास के लिए तैयार मॉडल के साथ, हम ‘एचजीरो’ की अत्यंत सटीक भविष्यवाणी कर सकते हैं।
अब, आइए देखें कि प्रत्येक विधि ‘एचजीरो’ के लिए क्या प्राप्त करती है। सबसे सटीक ‘डिस्टेंस लैडर’ माप नोबेल पुरस्कार विजेता एडम रीस के नेतृत्व वाली एसएचओईएस वैज्ञानिक टीम करती है। उनका नवीनतम माप एचजीरो = 73.2 किमी प्रति सेकंड प्रति मेगापार्सेक देता है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की प्लैंक उपग्रह टीम से सबसे सटीक सीएमबी माप, एचजीरो = 67.4 किमी प्रति सेकंड प्रति मेगापार्सेक है।
भले ही दोनों माप में अंतर 10 प्रतिशत से कम हैं लेकिन माप की प्रतिशत-स्तर की सटीकता की तुलना में अंतर बहुत बड़ा है। यह पारंपरिक रूप से वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसी घटना के संकेत के रूप में ली गई ‘5 सिग्मा’ सांख्यिकीय सीमा से भी ऊपर है जो पूरी तरह से यादृच्छिक संयोग के कारण नहीं है।
तो, दोनों मापों के बीच इतनी बड़ी विसंगति का क्या कारण हो सकता है? एक खामी यह हो सकती है कि सीएमबी से एचजीरो की भविष्यवाणी करने के लिए इस्तेमाल किया गया मॉडल गलत है। शायद ब्रह्मांड के लिए एक वैकल्पिक मॉडल ‘डिस्टेंस लैडर’माप के साथ सीएमबी भविष्यवाणी का सामंजस्य हो। पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में सिद्धांतकारों के बीच गहन विचार विमर्श हुआ है।
मुख्य बाधा यह है कि ब्रह्मांड का विकास दशकों से एकत्रित मजबूत मापों की एक श्रृंखला की सीमा में बंधा है। इसके अलावा, एचजीरो के सीएमबी माप की पुष्टि आकाशगंगाओं के सर्वेक्षणों का उपयोग करके तुलनीय परिशुद्धता के स्वतंत्र माप से की जाती है। नवीनतम मापक डार्क एनर्जी स्पेक्ट्रोस्कोपिक इंस्ट्रूमेंट (देसी)के एचजीरो के सहयोग से माप 68.5 किमी प्रति सेकंड प्रति मेगापार्सेक आता है जो सीएमबी मूल्य के अनुरूप लगभग एक प्रतिशत का अंतर है।
रचनात्मक हो रहे
सिद्धांतकारों को इसलिए रचनात्मक होना पड़ा है। एक सुझाव यह है कि सीएमबी उत्सर्जित होने से पहले प्रारंभिक ब्रह्मांड विस्तार आकस्मिक चरण से गुजरा। इससे पहले अणुओं का निर्माण मानक अपेक्षाओं से अधिक जल्दी हो गया। विचार यह है कि एचजीरो के ‘मानक’ सीएमबी माप ने इस प्रभाव की उपेक्षा की और अनुमान लगाया कि हबल कांस्टेंट वास्तव में जितना है उससे छोटा था।
इस प्रकार के समाधानों के लिए चुनौती यह है कि उन्हें सीएमबी में देखे गए अन्य विस्तृत परिपाटी की भी भविष्यवाणी करनी होगी, जिन्हें प्लैंक उपग्रह और अन्य दूरबीनों द्वारा अत्यंत सटीकता के साथ मापा गया है।
अन्य प्रस्तावित समाधानों में पहले अणुओं के निर्माण को प्रभावित करने वाले चुंबकीय क्षेत्रों के सुझाव शामिल हैं, या यहां तक कि पृथ्वी ब्रह्मांड के एक असामान्य हिस्से में अवस्थित है जो असामान्य रूप से बड़े पैमाने पर विस्तारित हो गई है। दुर्भाग्य से प्रस्तावित समाधानों में से कोई भी सवालों से परे नहीं है और सभी उपलब्ध आंकड़ों की व्याख्या नहीं करते।
आगे का रास्ता
तो आगे का रास्ता क्या है? डिस्टेंस लैडर में वैकल्पिक पायदानों का उपयोग करने वाली कुछ अत्यधिक आशाजनक तकनीकें हाल ही में एसण्चओईएस माप के लिए प्रतिस्पर्धी बनकर उभरी हैं।
आधुनिक एचजीरो अध्ययन के अग्रणी वेंडी फ्रीडमैन के नेतृत्व में एक टीम ने सुपरनोवा दूरियों के नए अंशांकन करने के लिए विशेष तारों का उपयोग किया है जो ‘टिप ऑफ रेड जायंट ब्रांच’ (टीआरजीबी) के रूप में जानी जाने वाली श्रेणी में आते हैं। यह विधि सेफिड्स के उपयोग में निहित अनिश्चितताओं को दूर कर सकती है।
(द कन्वरसेशन)
धीरज नेत्रपाल
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