प्रकृति पर व्यवसायों के दुष्प्रभावों का आकलन जटिल, लेकिन जरूरी

प्रकृति पर व्यवसायों के दुष्प्रभावों का आकलन जटिल, लेकिन जरूरी

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  • Publish Date - October 10, 2024 / 06:16 PM IST,
    Updated On - October 10, 2024 / 06:16 PM IST

(ब्रेंडन विंटल, साइमन ओकोन्नोर, विलियम गियरी, द यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न और सारा बेकेसी, आरएमआईटी यूनिवर्सिटी)

मेलबर्न, 10 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन लगभग 50 फीसदी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है। जैव विविधता के तेजी से नष्ट होने के कारण प्रकृति पर निर्भर ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों, मसलन-कृषि, पर्यटन, विनिर्माण और खाद्य उत्पादन, के कान खड़े हो जाने चाहिए। फिर भी व्यावसायिक फैसले लेने में प्रकृति से जुड़ी चिंताओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

सिडनी में इस हफ्ते आयोजित ‘ग्लोबल नेचर पॉजिटिव शिखर सम्मेलन’ में वैज्ञानिक, नेता, संरक्षणवादी और उद्योगपति ऑस्ट्रेलिया में प्रकृति की मदद करने के तरीकों पर चर्चा के लिए जुटे हैं, न केवल इसे नुकसान से बचाने के लिए, बल्कि इसमें सुधार करने के लिए भी। प्रकृति के संरक्षण की दिशा में सकारात्मक कदम उठाना और अधिक से अधिक व्यवसायों को इसके लिए प्रेरित करना बातचीत के केंद्र में होगा।

प्रकृति पर किसी व्यवसाय के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए सबसे पहले उसका आकलन करना जरूरी है। यह बेहद कठिन काम लग सकता है। दरअसल, प्रकृति विभिन्न तत्वों के बीच संबंधों का बेहद विविध और जटिल जाल है। ऐसे में हम इसे संख्या में कैसे आंक सकते हैं?

प्रकृति पर असर का आकलन

-मत्स्य उद्योग सीधे तौर पर जंगली मछली के भंडार पर निर्भर करता है। और कोई बिल्डर अगर एक नयी सोसाइटी बसाने के लिए पेड़-पौधों काटता है तो इसका प्रकृति पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

प्रकृति पर व्यवसायों का प्रभाव अप्रत्यक्ष भी हो सकता है। उदाहरण के लिए मार्जरीन (कृत्रिम मक्खन) निर्माता, जो कैनोला के तेल का इस्तेमाल करता है, जिसका उत्पादन परागकण के लिए मधुमक्खियों पर निर्भर किसान करता है। इंडोनेशिया में बिल्डर वर्षावनों में उगी लकड़ियां खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।

ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों के लिए अगले साल से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का आकलन करना और इसकी जानकारी देना अनिवार्य हो जाएगा। व्यवसायों पर अभी भले ही पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का खुलासा करने की बाध्यता नहीं है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में कई कंपनियां इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं।

मिसाल के तौर पर, 2022 में दुनिया की 400 से अधिक प्रतिष्ठित कंपनियों ने प्रकृति पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का अनिवार्य रूप से खुलासा करने का आह्वान किया। इनमें नेस्ले, रियो टिंटो, लॉरियाल, सोनी और वॉल्वो शामिल हैं।

प्रकृति पर व्यवसायों के दुष्प्रभावों को समझने और उनके आकलन में मदद करने के लिए दिशा-निर्देश उपलब्ध हैं, लेकिन इस दिशा में प्रगति काफी धीमी है। इसके लिए बहुत हद तक व्यवसायों की यह धारणा भी जिम्मेदार है कि उक्त काम बेहद जटिल है।

प्रकृति पर व्यवसायों के दुष्प्रभावों का आकलन चुनौतीपूर्ण है। ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन मापकर जलवायु परिवर्तन में किसी कंपनी के योगदान का आकलन करने के विपरीत प्रकृति पर व्यवसायों के दुष्प्रभावों का पता लगाने के लिए कोई एक सर्वसम्मत पैमाना नहीं है।

पारिस्थितिकी विज्ञानियों की विशेषज्ञता से मदद

-विभिन्न चुनौतियों और कठिनाइयों के बावजूद यह अनुमान लगाना संभव है कि कोई व्यवसाय पर्यावरण को किस हद तक प्रभावित करता है। इसमें मूलत: तीन चरण शामिल हैं :

1.यह समझना कि कोई व्यवसाय मोटे तौर पर प्रकृति के साथ किस तरह से जुड़ा होता है

2.यह आंकना कि कोई विशेष व्यावसायिक गतिविधि किस तरह प्रकृति पर निर्भर करती है और उस पर दबाव डालती है

3.यह मापना और जानकारी देना कि किसी खास व्यावसायिक गतिविधि का प्रकृति की स्थिति पर किस हद तक प्रभाव पड़ रहा है। अन्य शब्दों में कहें तो क्या जानवरों, पेड़-पौधों और पारिस्थितिकि तंत्र की स्थिति में सुधार हो रहा है या यह बिगड़ रही है?

‘एनकोर’ जैसे ऑनलाइन टूल पहले चरण को समझने में मददगार साबित हो सकते हैं।

कई व्यवसाय दूसरे चरण की तरफ बढ़ रहे हैं। व्यावसायिक गतिविधियों से प्रकृति पर कितना दबाव पड़ता है, इसका आकलन कुछ खास पैमानों के जरिये किया जा सकता है, मसलन-पानी की खपत, प्रदूषकों का उत्सर्जन, अपशिष्ट का उत्पादन और भूमि में बदलाव। इस काम में मदद के लिए भी कई ऑनलाइन टूल उपलब्ध हैं।

तीसरा चरण बेहद जटिल, लेकिन उतना ही अहम है। इसके तहत, व्यवसायों को जानवरों, पेड़-पौधों और पारिस्थितिकी तंत्र पर सीधे तौर पर पड़ने वाले असर का आकलन करना होता है। हम इस काम के लिए पारिस्थितिकी विज्ञानियों की विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं।

किसी नस्ल के जीवों की गिनती करना ही नहीं, बल्कि उनके विलुप्तिकरण का खतरा आंकना भी बेहद मुश्किल होता है। इसलिए इन जीवों का भविष्य बताने के लिए पारिस्थितिकी विज्ञानी अक्सर उनके निवास स्थान की स्थिति का वर्णन और निगरानी करते हैं। यह निवास स्थान वह वातावरण होता है, जिसमें ये जीव अपना अस्तित्व बनाए रखने के साथ-साथ प्रजनन कर सकते हैं।

पारिस्थितिक तंत्र-जैसे कि वर्षावन, आर्द्रभूमि या रेगिस्तान की स्थिति को अच्छे या बुरे के रूप में बयां किया जा सकता है। मूल्यांकन इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उक्त पारिस्थितिकी तंत्र के सभी पेड़-पौधे, जानवर और अन्य घटक अब भी मौजूद हैं, या फिर कीटों और अन्य आक्रामक प्रजातियों ने उसमें घुसपैठ करने में कामयाबी हासिल कर ली है?

ऑस्ट्रेलिया के ज्यादातर हिस्सों में पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति बयां करने वाले मानचित्र मौजूद हैं। अधिकांश संकटग्रस्त पेड़-पौधों और जानवरों के निवास स्थान का मानचित्रण भी उपलब्ध है।

इन संसाधनों तक पहुंच कठिन या महंगी नहीं है। साथ ही ऐसे डेटा की व्याख्या और विश्लेषण करने में सक्षम लोगों और संगठनों की संख्या बढ़ रही है।

आगे की राह

-प्रकृति पर व्यवसायों के दुष्प्रभावों का आकलन करने में मददगार संसाधन हमारे पास उपलब्ध हैं।

ऐसे में व्यवसायों और प्रकृति विशेषज्ञों के बीच सहयोग की तत्काल आवश्यकता है, ताकि उपलब्ध डेटा को व्यवसायों की जरूरतों के अनुरूप ढाला जा सके और उस रूप में पेश किया जा सके, जिसका वे इस्तेमाल कर सकें।

सरकारें इस दिशा में सहयोग कर सकती हैं। वे सुलभ और व्यावहारिक ऑनलाइन डेटा मंच स्थापित कर सकती हैं। साथ ही व्यवसाय की बेहतर समझ रखने वाले प्रकृति विशेषज्ञों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चला सकती हैं।

(द कन्वरसेशन) पारुल नरेश

नरेश