अलास्का के सबसे भारी हिमनद एक खतरनाक बिंदु के करीब पहुंच रहे हैं

अलास्का के सबसे भारी हिमनद एक खतरनाक बिंदु के करीब पहुंच रहे हैं

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  • Publish Date - July 7, 2024 / 07:25 PM IST,
    Updated On - July 7, 2024 / 07:25 PM IST

(बेथन डेविस, न्यूकैसल यूनिवर्सिटी)

न्यूकैसल अपॉन टाइन, सात जुलाई (द कन्वरसेशन) उत्तरी अमेरिका के सबसे बड़े ‘हिमनदों के समूह’ में से एक के पिघलने की प्रक्रिया तेज हो गई है और यह जल्द ही एक ऐसे बिंदु पर पहुंच सकती है जहां से नुकसान की भरपाई करना असंभव होगा। यह निष्कर्ष मेरे और मेरे नए शोध सहयोगियों ने अलास्का की राजधानी जूनो के पास अलास्का-कनाडा सीमा पर फैले हुए जूनो हिमक्षेत्र पर प्रकाशित किया है।

वर्ष 2022 की गर्मियों में मैंने अन्य शोधकर्ताओं के साथ तपती धूप में बर्फ के समतल, चिकने और सफेद पठार पर स्कीइंग की।

उस पठार से एक दूसरे से जुड़े हुए लगभग 40 विशाल हिमनद समुद्र की ओर हैं और इसके चारों ओर पर्वत चोटियों पर सैकड़ों छोटे हिमनद हैं।

हमारा काम अब नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है। इसने दिखाया है कि जूनो जलवायु परिवर्तन ‘फीडबैक’ का एक उदाहरण है: जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, गर्मियों में बहुत कम बर्फ बची रहती है। इसके परिणामस्वरूप बर्फ धूप और अधिक तापमान के संपर्क में आती है जिसका अर्थ अधिक बर्फ पिघलना, कम बर्फ गिरना इत्यादि है।

यही अब हो रहा है और हर गर्मियों में ग्लेशियर पहले की तुलना में बहुत तेजी से पिघल रहे हैं जिससे बर्फ का क्षेत्र पतला होता जा रहा है और पठार नीचे होता जा रहा है। एक सीमा पार हो जाने के बाद ये प्रतिक्रियाएं पिघलने में तेजी ला सकती हैं और बर्फ का लगातार नुकसान हो सकता है जो तब भी जारी रहेगा जब दुनिया में गर्मी कम हो जाएगी।

बर्फ पहले से कहीं अधिक तेजी से पिघल रही है।

सैटेलाइट तस्वीरें और चट्टानों के पुराने ढेर का उपयोग करके हम पिछले ‘लिटिल आइस एज’ (लगभग 250 साल पहले) के अंत से लेकर आज तक जूनो आइसफील्ड में बर्फ के नुकसान को मापने में सक्षम थे। हमने देखा कि लगभग 1770 में उस ठंडे दौर के खत्म होने के बाद ग्लेशियर सिकुड़ने लगे। यह बर्फ का नुकसान लगभग 1979 तक स्थिर रहा फिर इसमें तेजी आई। 2010 में यह फिर से तेज हो गया और पिछली दर से दोगुना हो गया। 1979 से 1990 की तुलना में 2015 और 2019 के बीच ग्लेशियर पांच गुना तेजी से पिघले।

हमारे डेटा से पता चलता है कि जैसे-जैसे बर्फ कम होती जाती है और गर्मियों में इसके पिघलने का समय लंबा होता जाता है बर्फ का क्षेत्र काला होता जाता है।

गर्मियों की ‘स्नोलाइन’ का अंत बढ़ रहा है और अब यह अक्सर जूनो आइसफील्ड के पठार पर हो रहा है जिसका मतलब है कि पुरानी बर्फ और ग्लेशियर की बर्फ सूरज के संपर्क में आ रही है। ये थोड़ी गहरी सतहें ज़्यादा ऊर्जा सोखती हैं जिससे बर्फ और अधिक तेजी से पिघलती है।

जैसे-जैसे ‘आइसफील्ड’ का पठार पतला होता जाता है वैसे-वैसे अधिक ऊंचाई पर बर्फ खत्म होती जाती है और पठार की सतह कम होती जाती है। इससे ‘आइसफील्ड’ का स्थिर होना या फिर ठीक होना मुश्किल होता जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि कम ऊंचाई पर गर्म हवा के कारण बर्फ पिघलती है जिससे एक अपरिवर्तनीय ‘टिपिंग पॉइंट’ (वह महत्वपूर्ण सीमा जिसके पार एक प्राकृतिक प्रणाली पूरी तरह अलग स्थिति में पहुंच सकती है) बनता है।

हिमनद किस तरह व्यवहार करते हैं और अलग-अलग हिमनद में कौन-सी प्रक्रियाएं और टिपिंग पॉइंट्स मौजूद हैं यह समझने के लिए इस तरह के दीर्घकालिक डेटा बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन जटिल प्रक्रियाओं के कारण यह अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है कि भविष्य में ग्लेशियर किस तरह व्यवहार करेंगे।

दुनिया की सबसे कठिन पहेली

हिमनद कितना बड़ा था और उसका व्यवहार कैसा था यह जानने के लिए हमने सैटेलाइट रिकॉर्ड का इस्तेमाल किया, लेकिन इससे वास्तव में 50 वर्षों तक की ही जानकारी मिल पाती है। और अधिक पीछे जाने के लिए हमें अलग-अलग तरीकों की जरूरत है। 250 साल पीछे जाने के लिए हमने ‘मोरेन रिज’ का नक्शा बनाया जो हिमनद के आगे के नुकीले भाग पर जमा मलबे के बड़े ढेर हैं और ऐसे स्थान जहां हिमनदों से नीचे की चट्टान साफ और चमकीली हुई है।

अपने मानचित्र की जांच करने और उसे बेहतर बनाने के लिए हमने दो सप्ताह बर्फ के मैदान पर और दो सप्ताह नीचे वर्षावन में बिताए। हमने ‘मोरेन रिज’ की चोटियों के बीच डेरा डाला, अपने भोजन को भालुओं से सुरक्षित रखने के लिए हवा में ऊंचे स्थान पर लटकाया, वर्षावन में झाड़ियों को काटते हुए अमेरिकी हिरण और भालुओं को चेतावनी देने के लिए चिल्लाए और हमारे खून के प्यासे मच्छरों से जूझते रहे।

यह सब दुनिया की सबसे कठिन पहेली को सुलझाने जैसा था।

इस तरह का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि विश्व के हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं। कुल मिलाकर वे वर्तमान में ग्रीनलैंड या अंटार्कटिक बर्फ की चादरों की तुलना में अधिक द्रव्यमान खो रहे हैं तथा पिछले दो दशकों में दुनिया भर में इन हिमनदों के पिघलने की दर दोगुनी हो गई है।

हमारी लंबी समय श्रृंखला से पता चलता है कि यह कितनी तेजी से बढ़ता जा रहा है।

(द कन्वरसेशन)

शुभम नरेश

नरेश