पुतिन ने न्यूक्लियर युद्ध की जगह अपनाया ये नया तरीका, जानें राष्ट्रपति की प्राइवेट आर्मी में कौन शामिल

AIDS and Rapist Join Private Army: पुतिन ने न्यूक्लियर युद्ध की जगह अपनाया ये नया तरीका, जानें राष्ट्रपति की प्राइवेट आर्मी में कौन शामिल

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  • Publish Date - November 4, 2022 / 02:12 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:12 PM IST

AIDS and Rapist Join Private Army:  रूस और युक्रेन के बीच युद्ध करीब 7 महीने से जारी है। युद्ध खत्म होने के नाम नहीं ले रहा है। रोजाना दोनों ही तरफ से हमले जारी है। इसी बीच पुतिन ने युक्रेन को न्यूक्लियर अटैक की भी धमकी दी है। लेकिन पुतिन ने नया हथियार अपनाने जा रहा है जिससे वे बिना कोई हमला करे यूक्रेन को खत्म करने की रणनीति जबना रहा है। बता दें कि युक्रेन को हराने के लिए पुतिन हथियार के रूप में रेपिस्ट और एड्स के मरीजों को ढूंढ रहा है।

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इन लोगों को प्राइवेट आर्मी में किया जा रहा शामिल

AIDS and Rapist Join Private Army: रूस में HIV एड्स और हेपेटाइटिस के मरीजों, रेपिस्टों और समलैंगिकों को सेना में भर्ती किया जा रहा है। अलग-अलग देशों की तीन रिपोर्ट में ये दावा किया गया है। ऐसे लोगों को रूसी सेना की ‘वैगनर’ टुकड़ी में शामिल किया जा रहा है, जिसे प्राइवेट आर्मी भी कहते हैं। लेकिन, पुतिन की प्राइवेट आर्मी ‘वैगनर’ में एड्स मरीजों को क्यों भर्ती किया जा रहा है।

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रिपोर्ट में हुआ खुलासा

AIDS and Rapist Join Private Army: 30 अक्टूबर को यूनाइटे किंगडम के रक्षा मंत्रालय की एक इस रिपोर्ट में पुतिन के शेफ मोगुल येवजेनी प्रिगोझिन के हवाले से दावा किया गया है कि यूक्रेन की प्राइवेट आर्मी में एड्स और हेपेटाइटिस-C के मरीजों की भर्ती की जा रही है। इतना ही नहीं यूक्रेन के अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक ये दावा किया गया है कि ऐसे करीब 100 से ज्यादा पीड़ित कैदिओं को प्राइवेट आर्मी में भर्ती करने की बात कही। थइतना ही नहीं रूस में रेप के दोषी, समलैंगिक और संक्रामक रोगों से पीड़ित कैदियों को जबरन मोर्चे पर लड़ने के लिए भेजा जा रहा है।

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इस वजह से किया ऐसा काम

AIDS and Rapist Join Private Army: अमेरिकी इंटेलिजेंस के मुताबिक रूसी सेना में सैनिकों की भारी कमी हो गई है। ऐसे में लंबे समय तक जंग में टिके रहने के लिए जेल में बंद खूंखार अपराधियों और बीमारों का सहारा लिया जा रहा है। जानकारी के अनुसार रूस के जेलों में अभी भी सोवियत के समय जैसा ही भेदभाव होता है। यहां रेपिस्ट, समलैंगिक और संक्रामक बीमारी के मरीजों को ‘द शेम्ड’ कहते हैं। जेल में इनके साथ मारपीट और भेदभाव होता है। ऐसे में आसानी से वैगनर आर्मी में भर्ती कर इन्हें जंग के मैदान में झोंका जा सकता है।

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