आधुनिकता के बीच आज भी कई ऐसी रीति रिवाज और परम्पराए है जिनका निर्वहन किया जा रहा है कुछ ऐसी ही परंपरा निभाई जाती है सरगुज़ा में।
यहां सरगुज़ा महराज को उनके ही महल में प्रवेश की अनुमति आदिवासी समाज के लोग देते है, उनके आदेश के बिना राजा भी अपने महल में प्रवेश नहीं कर पाता।
इसके अलावा शस्त्र पूजा, गज अश्व पूजा, नगाड़ा पूजा,, और निशान पूजा की परम्पराए निभाई जाती है।
दरअसल सरगुजा जिले में राज परिवार के द्वारा अष्टमी और नवमी के संधि के समय में संधि पूजा की जाती है, जिसमें सरगुजा राज परिवार के सदस्य अपनी कुलदेवी महामाया और समलाया मंदिर में संधि पूजा करते हैं।
संधि पूजा कर प्रजा और देश के मंगल कामना करते हैं और इसके बाद शस्त्र पूजा कर राजा अपने प्रजा के रक्षा का प्रण करता है।
इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए वर्तमान सरगुजा महाराज टीएस सिंह देव ने नवरात्रि के अवसर पर शस्त्र पूजा की।
इसमें अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों ने अपने-अपने विधि विधान से पूजा अर्चना कर राजा के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की।
वर्षों से चली आ रही इस पूजा के जरिए राजा के प्रति लोग अपनी भावना अपना साथ और अपना आभार प्रकट करते हैं।
वर्षों से चली आ रही इस पूजा के जरिए राजा के प्रति लोग अपनी भावना अपना साथ और अपना आभार प्रकट करते हैं।
जब तक पूजा संपन्न नहीं होती और आदिवासी समाज के लोग राजा को महल में प्रवेश की इजाजत नहीं देते।
जब तक पूजा संपन्न नहीं होती और आदिवासी समाज के लोग राजा को महल में प्रवेश की इजाजत नहीं देते।
इसी परंपरा का निर्वहन आज भी चल रहा है और सरगुजा महाराज टीएस सिंह देव ने आज पुरखों की इस परंपरा का निर्वहन किया।
सरगुजा महाराज टीएस सिंह देव ने इस परंपरा का निर्वहन कर आदिकाल से चली आ रही संस्कृति और सभ्यता को बचाए रखने का काम किया जा रहा है।