छत्तीसगढ़ के इन प्रसिद्ध शिव मंदिरों की हैं अनोखी विशेषताएं, होती है भक्तों की हर मनोकामना पूरी
छत्तीसगढ़ में भगवान शंकर के ऐसे कई मंदिर हैं जिनकी अनूठी विशेषताएं और पौराणिक मान्यताएं हैं। चलिए इन मन्दिरों के विषय में विस्तार से जानते हैं...
रायपुर राजधानी से करीब 25 कि.मी. दूरी पर कलचुरी कालीन शिव मंदिर स्थित है। खास बात यह है कि यहां शिवलिंग स्वयं भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है।
कलचुरी युग में 12वीं-13वीं सदी में निर्मित इस मंदिर प्रांगण में एक कुंड बना हुआ है, जिसका पानी कभी नहीं सूखता। मान्यता है कि यहां श्रद्धालुओं की मनोकामना छह महीने में पूरी हो जाती है।
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में मौजूद भूतेश्वर महादेव एक अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग है। इस शिवलिंग की खासियत ये है कि इसका आकार प्रतिवर्ष 6-8 इंच बढ़ रहा है।
सुरंग टीला मंदिर छत्तीसगढ़ के सिरपुर शहर में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। इस पश्चिममुखी विशाल मंदिर में पाँच गर्भगृह हैं जिनमें सफ़ेद, काला, लाल और पीले रंग के चार शिवलिंग हैं। अन्य एक गर्भगृह में श्री गणेश की प्रतिमा है।
भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के चौरागाँव में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जिसे लगभग 1000 बर्ष पुराना माना जाता है। इसकी जटिल नक्काशी और अद्भुत चित्रकला के लिए यह प्रसिद्ध है।
पातालेश्वर/केदारेश्वर महादेव मंदिर बिलासपुर जिले के मल्हार में स्थित है। 108 कोण युक्त इस मंदिर में काले चमकीले पत्थर से बना गौमुखी आकृति का शिवलिंग है।
महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित 8वीं सदी में बना कुलेश्वर मंदिर के बारे में कहते हैं कि उसी स्थान पर वनवास काल के दौरान माता सीता ने रेत का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी।
छत्तीसगढ़ के पाली शहर में राजा विक्रमादित्य ने लगभग 870 ई. में महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के सामने उसी समय से एक बड़ा तालाब भी है, जहां अब भी कई अवशेष देखने को मिलते हैंं।