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सूर्यकांत त्रिपाठी को क्यों कहते हैं 'निराला'      जानें क्या है       इसकी वजह

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फ़रवरी 1896 को बंगाल की महिषादल रियासत (ज़िला मेदिनीपुर) में हुआ था।

निराला के बचपन में उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। उनके पिताजी का नाम पंडित राम सहाय था वह सिपाही की नौकरी करते थे।

‘महाप्राण’ नाम से विख्यात निराला छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक हैं।

उन्होंने कवि के रूप में अपनी वैयक्तिकता और विशिष्टता को व्यक्त करने के लिए अपना उपनाम "निराला" अपनाया, जिसका हिन्दी में अर्थ "अद्वितीय" या "बेजोड़" होता है।

निराला जी हिंदी साहित्य के एक बहुत ही महत्वपूर्ण कवि, लेखक , उपन्यासकार, कहानीकार ,निबंधकार और संपादक थे।

 1920 ई के आसपास उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया था।उनकी सबसे पहली कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र  1920 जून में प्रकाशित हुई ।

 इनकी सबसे पहली कविता संग्रह 1923 अनामिका प्रकाशित हुई थी।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के जीवन का अंतिम समय अस्वस्थता के कारण प्रयागराज के एक छोटे से कमरे में बीता तथा इसी कमरे में 15 अक्टूबर 1961 को कवि निराला जी की मृत्यु हुई।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए  1955 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

सूर्यकांत त्रिपाठी के काव्य संग्रह– अनामिका (1923),परिमल (1930),गीतिका (1936),अनामिका (द्वितीय),तुलसीदास (1939),कुकुरमुत्ता (1942),अणिमा (1943) आदि हैं।