3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है। आज वह दिन है जब केवल सावित्रीबाई फुले का ही जन्म नहीं हुआ बल्कि उनके साथ जन्म हुआ नारी शिक्षा और नारी मुक्ति आंदोलन का भी।
उन्होंने समाज सेविका, कवयित्री और दार्शनिक के तौर पर पहचान बनाई। खुद को शिक्षित करने के साथ ही उन्होंने अन्य महिलाओं को शिक्षित करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी।
किताब पढ़ने पर पिता ने डांटासावित्रीबाई पढ़ना चाहती थीं, जब उन्होंने अंग्रेजी किताब पढ़ने की कोशिश की तो पिता ने किताब फेंक कर डांट लगाई। इसी दिन सावित्रीबाई ने प्रण लिया कि वह शिक्षा हासिक करके रहेगी।
विवाह के बाद पढ़ाईसावित्रीबाई ने अपने पति से शिक्षा हासिल करने की इच्छा जाहिर की,सावित्रीबाई पढ़ने के लिए जाती थीं तो लोग उनपर पत्थर, कूड़ा और कीचड़ फेंकते थे। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और हर चुनौती का सामना किया।
देश का पहला महिला विद्यालय खोला1848 में पति ज्योतिराव के सहयोग से महाराष्ट्र के पुणे में देश का पहला बालिका विद्यालय खोला। इस कार्य के लिए सावित्रीबाई को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी सम्मानित किया था।
महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ीं लंबी लड़ाईनारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता सावित्रीबाई फुले ने प्रति समाज में फैली छुआछुत को मिटाने केलिए संघर्ष किया। उन्होंने समाज में शोषित हो रही महिलाओं को शिक्षित कर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया।
प्लेग से हो गई मृत्युसावित्रीबाई फुले की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण हो गई। लेकिन उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है।
किसी समाज या देश की प्रगति तब तक संभव नहींजब तक कि वहां कि महिलाएं शिक्षित ना हों।