झुककर चलते ये लोग और जवानी में ही बुढ़ापे का नज़र आते इन लोगों के जीवन में लगता है कोई जहर घूल गया है। आज यहां लोग पैदा तो स्वस्थ होते है, लेकिन धीरे धीरे खोखली होती इनकी हड्डियां इनको बुढ़ापे की ओर जल्द धकेल रही है।
गांव बिस्तर और बैसाखियों पर आने लगा। धीरे-धीरे लोगों की कमर झुकने लगी और अब वे सीधे खड़े होने में असक्षम होने लगे। लोगों के पैर टेढ़े होने लगे। दांत पीले होने और झड़ने लगे तथा लोगों को खुद को घसीट कर आगे बढ़ने की नौबत आने लगी।
बाद में उन्हें पता चला कि हेण्डपम्प से निकलने वाले फ्लोराइड युक्त पानी की वजह से उन्हें समस्या हो रही है। यहां हैंडपंप से निकलने वाले पानी में फ्लोराइड की अधिकता है। जिसके सेवन से लोगों की टेढ़ी हो चुकी हड्डियां तो सुधारी नहीं जा सकती।
चौका देने वाली बात ये है कि जिस फ्लोराइड युक्त पानी को पीते रहने की वजह से इस गांव की एक तिहाई आबादी विकृति की दंश झेल रहे है। उसी फ्लोराइड से युक्त हैंडपंप का पानी पीने को ग्रामीण अब भी मजबूर हैं।
गांव में 3 हैंडपंप काम कर रहा है जिसे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने लगा रखा है, उसी के पानी को पीकर गांव के लोग अपनी प्यास बुझा रहे हैं। क्योंकि यहां के निवासियों के पास प्यास बुझाने के लिए दूसरा और कोई विकल्प नही है
नतीजतन गांव विकृति का शिकार हो चला है। पहले लोग कुएं और नदी का पानी पी रहे थे। इसके बाद सरकारी हैंडपंप लगा। इसके पानी में फ्लोरोसिस की मात्रा इतनी अधिक थी कि उसने लोगों की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया
अब लगभग हर घर के लोगों की हड्डियों में खराबी है। चलने-फिरने में पूरी तरह से असमर्थ खाट में पड़े गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 3 साल के अंदर ही उसके कमर में दर्द शुरू हो गया। धीरे-धीरे कमर झुकने लगी और अब वे सीधे खड़े नहीं हो पाते न ही चलफिर पाते हैं।
गांव के 40 वर्ष से अधिक के लोगों का जीवन लकड़ी के सहारे चल रही है। बीमारी के अत्यधिक प्रभाव के कारण गांव के बुजुर्ग चल तक नही पाते। उन्हें उनके बच्चे और नाती- पोते ही नित्यकर्म करवाते और खाना तक अपने हाथों से खिलाते है।