महिलाओं के अधिकारों और मुक्ति के कट्टर समर्थक बाबासाहेब के लिए मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाना एक राजनीतिक कार्रवाई थी क्योंकि उनका मानना था कि इस पुस्तक में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में न केवल महिलाओं बल्कि दलितों के प्रति भी अमानवीय व्यवहार का उपदेश देने वाले नियम शामिल हैं।