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महाकुंभ ऐसा समागम है, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु न केवल आस्था की डुबकी लगाने पहुंचते प्रयागराज पहुंचते हैं। बल्कि, साधु संन्यासियों के दर्शन कर उनका आशीर्वाद भी लेते हैं।
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इन्हीं संतों में से एक समूह दंडी स्वामियों का है। महाकुंभ में दण्डी बाड़ा का विशेष महत्व है, आइए जानते हैं आखिर क्या है दंडी बाड़ा, इसमें किस तरह के सन्यासी जुड़े होते हैं?
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हाथ में दण्ड जिसे ब्रह्म दण्ड कहते है, धारण करने वाले संन्यासी को दण्डी संन्यासी कहा जाता है।
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दण्डी संन्यासियों का संगठन दण्डी बाड़ा के नाम से जाना जाता है। 'दण्ड संन्यास' सम्प्रदाय नहीं बल्कि आश्रम परंपरा है। प्रथम दण्डी संन्यासी के रूप में भगवान नारायण ने ही दण्ड धारण किया था।
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दंडी स्वामी खुद नारायण के अवतार होते हैं। मान्यता है कि दंडी स्वामी के दर्शन मात्र से ही नारायण के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।
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धार्मिक मान्यता है कि अगर कुंभ में दंडी स्वामी की सेवा, दर्शन नहीं किए तो कुंभ स्नान, जप-तप अधूरा माना जाता है।
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दंडी संन्यासी केवल ब्राह्मण ही होता है। ये कठिन दिनचर्या और तप के जरिये ये अपनी साधना में लगे रहते हैं।
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दंडी संन्यासी खुद भोजन नहीं बनाते और न ही बिना निमंत्रण किसी के यहां भोजन करने जाते हैं। दंडी संन्यासी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
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