ताजमहल को लाइटिंग की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह एक संगमरमर की संरचना है और रात में इसकी खूबसूरती को प्राकृतिक रूप से देखा जा सकता है।
ताजमहल में लाइट लगाने से उसकी सफ़ेद रंगत को नुकसान पहुंच सकता है।
ताजमहल एक ऐतिहासिक स्मारक है और इसकी ऐतिहासिक महत्ता को बनाए रखने के लिए लाइट नहीं जलाई जाती।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के मुताबिक, लाइट से आकर्षित होने वाले कीड़े ताजमहल की दीवारों पर मल त्याग करते हैं और इससे दीवारों को नुकसान पहुंचता है।
ताजमहल की संगमरमरी दीवारों और नक्काशी को बचाने के लिए लाइट नहीं जलाई जाती। लाइट की गर्मी से संगमरमर की दीवारें खराब हो सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 1998 को आदेश दिया था कि पर्यावरण पर असर के बिना ताजमहल के 500 मीटर के दायरे में कोई भी कार्यक्रम नहीं किया जा सकता।
इन कारणों से ताजमहल में लाइट नहीं जलाई जाती है। इसके बजाय, ताजमहल को प्राकृतिक रोशनी से सजाया जाता है, जो इसकी सुंदरता को बढ़ाता है।
ताजमहल को दो बार दूधिया रोशनी से सजाया गया था। पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध के समय 8 मई 1945 को तथा दूसरी बार 20 से 24 मार्च 1997 को।