जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर माताएं अपनी संतान के लिए रखती हैं।
धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को माताएं अपनी संतान की खुशहाली, समृद्धि और दीर्घायु के लिए रखती हैं। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
इस साल 24 सितंबर के दिन जितिया व्रत का नहाय खाय संपन्न किया गया जिसके बाद 25 सितंबर को जितिया व्रत रखा जा रहा है और 26 सितंबर के दिन व्रत का पारण किया जाएगा।
इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है और 3 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में माताएं पूजा-पाठ में मग्न रहती हैं।
जितिया व्रत की पूजा करने के लिए पूजास्थल की गोबर और मिट्टी से लिपाई की जाती है। इसके बाद मिट्टी लीपकर छोटा सा तालाब बनाया जाता है।
इसके बाद भगवान जीमूतवाहन, चील और सियार की कुश से मूर्ति बनाई जाती है और मूर्ति को मिट्टी के पात्र या जल में स्थापित कर सजाया जाता है।
पूजा करने के लिए भगवान के समक्ष धूप, दीप, फूल, माला और अक्षत आदि अर्पित कर जितिया व्रत की कथा का पाठ होता है और आरती करने के बाद भोग लगाकर पूजा संपन्न की जाती है।