स्वास्तिक को ‘साथिया’ या ‘सतिया’ के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक ऋषियों ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष प्रतीकों की रचना की। स्वास्तिक इन्हीं संकेतों में से एक है, जो मंगल को दर्शाता है।
स्वास्तिक के धार्मिक, ज्योतिष और वास्तु के महत्व को भी समझाया। आज स्वास्तिक का प्रयोग हर धर्म और संस्कृति में अलग-अलग तरीके से किया जाता है।
हिंदू धर्म में, स्वास्तिक एक पवित्र प्रतीक है, जो शुभता, समृद्धि, और सौभाग्य का प्रतिनिधित्व करता है। यह अक्सर मंदिरों के द्वारों पर, घरों के प्रवेश द्वार पर, और विशेष अवसरों पर बनाया जाता है।
बौद्ध धर्म में, स्वास्तिक को "श्रीवत्स" कहा जाता है, और यह भगवान बुद्ध के पदचिह्नों पर अक्सर दिखाया जाता है। यह बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार और ज्ञान का प्रतीक है।
जैन धर्म में, स्वास्तिक को "स्वास्तिक" या "साथिक" कहा जाता है, और यह जैन तीर्थंकरों के चिन्हों में से एक है। यह जैन धर्म के सिद्धांतों के अनुसार जीवन की गति और संतुलन का प्रतीक है।
अब जानते हैं स्वास्तिक बनाने का सही तरीका, सबसे पहले, सतह को साफ करें और उस पर एक बिंदु या छोटा चिह्न बनाएं, जो स्वास्तिक का केंद्र होगा।
इसके बाद, केंद्र से शुरू करके चारों दिशाओं में चार समान आकार की लकीरें खींचें, जो एक समान चौड़ाई और लंबाई की हों। ये लकीरें एक क्रॉस की तरह दिखेंगी।
अब, प्रत्येक लकीर के सिरे पर एक छोटा सा मोड़ बनाएं, जो उसे एक लहरदार आकार देगा। यह मोड़ हमेशा उसी दिशा में होना चाहिए, यानी यदि आप घड़ी की दिशा में बना रहे हैं, तो मोड़ हमेशा घड़ी की दिशा में होना चाहिए।
इसके बाद, प्रत्येक लकीर के बीच में एक छोटा सा बिंदु बनाएं, जो स्वास्तिक को और भी सुंदर बनाता है।
अंत में, स्वास्तिक के चारों ओर एक छोटी सी सीमा बनाएं, जो इसे और भी परिभाषित करती है।
इसके बाद, केंद्र से शुरू करके चारों दिशाओं में चार समान आकार की लकीरें खींचें, जो एक समान चौड़ाई और लंबाई की हों। ये लकीरें एक क्रॉस की तरह दिखेंगी।