दुर्ग लोकसभा में कांग्रेस -भाजपा की चुनावी लड़ाई अपने चरम पर हैं। आज दोनों ही दलों के उम्मीदवारों ने अपना नामांकन दाखिल किया।
विजय बघेल की रैली में जहां सीएम विष्णुदेव साय शामिल हुए तो वही राजेंद्र साहू की रैली में पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने शिरकत की।
दोनों ही दलों के नेताओं ने अपने अपने जीत के बड़े-बड़े वादे भी किये और एक-दुसरे पर जमकर हमला भी बोला। लेकिन उनके दावों में कितन दम हैं?
बात करें दुर्ग लोकसभा की तो यह पिछले कुछ दशक से भाजपा का गढ़ बना हुआ हैं। हालाँकि 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने यहाँ वापसी की।
2014 में कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू ने इस सीट से भाजपा के सरोज पांडेय को मोदी लहार के बावजूद 17 हजार मतों से हराया था।
2019 में इस सीट को बीजेपी ने हथियाने में कामयाबी पाई और विजय बघेल ने कांग्रेस की प्रतिमा चंद्राकर को करीब 4 लाख मतों से पटखनी दी।
2009 के चुनाव में यहाँ से बीजेपी की सरोज पांडेय ने कांग्रेस के प्रदीप चौबे को करीब 10 हजार वोटों के अंतर से हराया था।
बात करें 2004 की तो यहाँ से भाजपा के दिवंगत नेता ताराचंद साहू ने भूपेश बघेल को ही तकरीबन 60 हजार वोटो से शिकस्त दी थी।
1999 में भी इस सीट से भाजपा के ही ताराचंद साहू सांसद बने थे। तब उन्होंने कांग्रेस के प्रदीप चौबे के खिलाफ 3 लाख 89 हजार से ज्यादा मत हासिल किये थे।
इससे पहले हुए 1996 में भी ताराचंद साहू जबकि 1991 के चुनाव में कांग्रेस के चंदूलाल चंद्राकर ने बाजी मारी और दुर्ग का किला फतह किया।
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