दिवाली एक ऐसा त्योहार है जो संध्याकाल यानी प्रदोष काल और रात्रिकाल में मनाया जाता है।
माता लक्ष्मी का प्राकट्य अमावस्या की संध्याकाल में हुआ था। वे रात्रि में भ्रमण करती हैं। उनकी पूजा प्रदोष काल और निशीथ काल में होती है।
31 अक्टूबर गुरुवार के दिन प्रदोष काल भी है रात्रिकालीन अमावस्या के साथ ही निशीथ मुहूर्त काल भी है। इसलिए 31 की रात्रि को लक्ष्मी पूजा की बात कही जा रही है।
हालांकि कुछ विद्वानों के अनुसार यदि सूर्योदय के बाद 3 प्रहर तक कोई तिथि व्याप्त हो तो उसी उदय काल में ही तिथि का होना माना जाता है और उसी काल में पूजा करना चाहिए।
1 नवंबर को अमावस्या 3 प्रहर की है और प्रदोष व्यापिनी भी है। इसलिए कई विद्वान 01 नवंबर को दिवाली मनाना शास्त्र सम्मत बता रहे हैं। अब सही क्या है? आओ समझते हैं
प्रदोष काल सूर्यास्त से 48 मिनट तक का समय होता है। 31 अक्टूबर की शाम को 05:36 सूर्यास्त होगा यानी इस दिन प्रदोषकाल में अमावस्या रहेगी। शाम 05:36 के बाद कभी भी पूजा करें।
वहीं 01 नवंबर को शाम 6:16 बजे तक अमावस्या रहेगी और सूर्यास्त 05:36 मिनट पर होगा। इस दिन भी प्रदोषकाल में अमावस्या रहेगी। यानी 01 नवंबर को शाम 05:36 के बाद करीब 40 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है, इसके बाद नहीं।
अधिकांश विद्वानों का मत है कि दिवाली की पूजा अमावस्या की रात को ही होती है। 01 नवंबर को अमावस्या की रात नहीं रहेगी।
दूसरा यह कि श्रीराम के स्वागत में कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या में ही अयोध्या में दीपक जलाए गए थे।
यह पर्व अमावस्या के अंधकार से हमें प्रकाश की ओर ले जाने वाला है। इसलिए 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना सभी ओर से शास्त्र सम्मत माना जा रहा है।