दीपावली शब्द 'दीप' (दीपक) और 'आवली' (पंक्ति) से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है 'दीपों की पंक्ति'। वैदिक प्रार्थना है- 'तमसो मा ज्योतिर्गमय:' अर्थात् अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला पर्व है- 'दीपावली'।
प्राचीन काल में इसे दीपोत्सव कहा जाता था। माना जाता हैं कि कार्तिक अमावस्या की रात अन्य अमावस्या की रातों से सबसे घनी होती है, इस वजह से इस दिन दीपक जलाकर अंधकार को दूर करने की परंपरा चली आ रही है।
कहा जाता हैं कि समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए थे, वहीं इसी दिन माता काली भी प्रकट हुई थी इसलिए इस दिन काली और लक्ष्मी दोनों की ही पूजा होती है और इसी कारण दीपोत्सव मनाया जाता है।
कहते हैं कि दीपावली पर्व सर्वप्रथम राजा महाबली के काल से शुरू हुआ था। राजा बली की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया, साथ ही कहा कि उनकी याद में भू लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाएंगे। तब से दीपोत्सव का पर्व प्रारंभ हुआ।
यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बली को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी।
कहते हैं कि भगवान श्रीराम अपना 14 वर्ष का वनवास पूरा करने के बाद लौटे थे। माना जाता हैं कि वे सीधे अयोध्या न जाकर पहले नंदीग्राम गए थे और वहां कुछ दिन रुकने के बाद दीपावली के दिन अयोध्या आए थे।
इस दौरान उनके लिए खासतौर पर नगर को दीपों से सजाया गया था। तभी से दिवाली के दिन दीपोत्सव मनाने का प्रचलन शुरू हुआ।
ऐसा कहा जाता है कि दीपावली के एक दिन पहले श्री कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था जिसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है।
वहीं श्री कृष्ण द्वारा सत्यभामा के लिए पारिजात वृक्ष लाने से जुड़ी है। श्री कृष्ण ने इंद्र पूजा का विरोध करके गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा प्रारंभ की थी।