ओडिशा के पुरी में हर साल आषाढ़ माह में भगवान श्रीकृष्ण के रूप जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकाली जाती है।
पुरी रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से शुरू होती हैं, ये उत्सव पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है।
रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है।
यात्रा के पीछे यह मान्यता है कि भगवान अपने गर्भ गृह से निकलकर प्रजा का हाल जानने निकलते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जो भक्त इस रथ यात्रा में हिस्सा लेकर भगवान के रथ को खींचते है, उनके तमाम दुख, कष्ट खत्म हो जाते हैं।
रथ यात्रा निकालने के 15 दिन पहले ही जगन्नाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, इस अवधि में भक्त दर्शन नहीं कर सकते।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम की मूर्तियों को गृर्भग्रह से बाहर लाया जाता है और पूर्णिमा स्नान के बाद 15 दिन के लिए वे एकांतवास में चले जाते हैं।
माना जाता है कि पूर्णिमा स्नान में ज्यादा पानी से नहाने के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं, इसलिए एकांत में उनका उपचार किया जाता है।
इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है। रथों के लिए काष्ठ का चयन किया जाता है।