बनारस की होली पूरे दुनिया में मशहूर है.यहां बाबा विश्वनाथ अपने भक्तों के साथ महाश्मशान में भी होली खेलते हैं . होली का ऐसा अद्भुत नजारा पूरे दुनिया में कहीं और नहीं देखने को मिलता
जहां जलती चिताओं के बीच अघोरी और शिव के गण होली खेलते हैं.चिता भस्म की इस होली को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर से लोग यहां आते हैं.।
वाराणसी के महाश्मशान घाट हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका पर अलग-अलग दिन ये होली खेली जाती है. हरिश्चंद्र घाट पर रंगभरी एकादशी के दिन यह होली होती है और मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के अगले दिन इसका आयोजन होता है
इस बार 20 और 21 मार्च को महाश्मशान पर चिता भस्म की होली खेली जाएगी. ऐसे में यदि आप भी इस अद्भुत होली को निहारना चाहते हैं तो आज हो वाराणसी आने का प्लान पक्का कर लीजिए.
मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली के आयोजक अपने गवना के बाद बाबा विश्वनाथ अपने गणों के साथ श्मशान पर होली खेलने आते हैं.काशी में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
इस होली में भस्म, चिता की राख और गुलाल से जलती चिताओं के बीच होली खेली जाती है. इस दिन महाश्मशान घाट पर गम के बीच उत्सव का माहौल भी देखा जाता है. ऐसी तस्वीर पूरे दुनिया में कहीं और देखने और सुनने को नहीं मिलती.
रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद, शिव अपने गणों (परिचारकों), भूतों और आत्माओं के साथ वही होली मनाने के लिए मसान जाते हैं जो श्मशान घाट पर रहते हैं, जिसे हम मसान की होली कहते हैं।
रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद, शिव अपने गणों (परिचारकों), भूतों और आत्माओं के साथ वही होली मनाने के लिए मसान जाते हैं जो श्मशान घाट पर रहते हैं, जिसे हम मसान की होली कहते हैं।