Red Section Separator

Akshay Navami Ki Vrat Katha

अक्षय नवमी कार्तिक शुक्‍ल नवमी को मनाई जाती है और इस दिन विधि विधान से भगवान विष्‍णु की पूजा करने से धन में अक्षय वृद्धि होती है।

आंवले के पेड़ में भगवान विष्‍णु का वास होता है। अक्षय नवमी की पूजा में व्रत कथा का पाठ करना चाहिए और पूजा तभी संपूर्ण मानी जाती है।

अक्षय नवमी व्रत कथा - एक राजा का प्रण था कि वह रोज सवा मन आंवले का दान करके ही खाना खाता था इस कारण उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहू ने खजाना खाली होने के डर से राजा को दान करने से मना किया।

इस बात से दुखित राजा और रानी ने महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए। राजा-रानी आंवले का दान करने का प्रण पूरा नहीं कर पाने के कारण खाना नहीं खाया और भूखे-प्यासे सात दिन बीत गए।

तब भगवान ने सोचा कि इसका सत नहीं रखा तो इसका विश्वास खत्म हो जाएगा इसलिए उन्होंने जंगल में ही राज्य, महल और बाग-बगीचे के साथ ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए।

सुबह जब राजा-रानी उठे तो दोबारा राज्य बसा देख बहुत खुश हुए और कहा, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए। फिर उन्होंने नहा धोकर आंवले का दान कर खाना खाया और खुशी-खुशी रहने लगे।

उधर आंवला देवता का अपमान करने और माता-पिता से बुरा बर्ताव की वजह से बहू-बेटे के बुरे दिन आ गए, उसका राज्य छीन गया, दाने-दाने के मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिता के राज्य पहुंचे जहां उनके पिता ने बिना पहचाने उन्हें काम पर रख लिया।

एक दिन बहू अपनी सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा तो रोते हुए याद करने लगी की ऐसा मस्सा मेरी सास का भी था और ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा। आज वे लोग न जानें कहां होंगे?

यह सोचकर बहू को रोना आ गया और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलटकर देखा और कारण पूछा, जिसके बाद बहू ने पूरी बात बताई तब रानी ने पहचान लिया और बेटे-बहू को समझाया कि दान से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है।

जिसके बाद बेटे-बहू भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे। हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना।