लखनऊ, 25 अक्टूबर (भाषा) उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार सोमवार को समाप्त हो गया। खास बात यह रही कि ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के प्रमुख घटक दलों समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के नेताओं ने एक भी संयुक्त रैली नहीं की।
हालांकि दोनों दलों के नेताओं ने दावा किया कि सपा-कांग्रेस गठबंधन में ‘सब ठीक है’ और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के महाराष्ट्र तथा झारखंड विधानसभा चुनाव में ‘व्यस्त’ होने के चलते उपचुनाव के लिए प्रचार के दौरान वे सपा नेताओं के साथ मंच साझा नहीं कर पाये।
उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिये 20 नवंबर को मतदान होगा और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे।
हालांकि, सपा-कांग्रेस गठबंधन के पटरी पर होने के दावे के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने दावा किया कि ‘इंडिया’ गठबंधन उपचुनाव के लिए प्रचार से गायब था। ऐसा इसलिये क्योंकि सपा और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे से मदद लेने के लिए तैयार नहीं थे।
रालोद के प्रान्तीय अध्यक्ष रामाशीष राय ने सपा-कांग्रेस गठबंधन पर निशाना साधा। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”समाजवादी पार्टी को छोड़कर ‘इंडिया’ गठबंधन जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा था। कांग्रेस भी दिखाई नहीं दे रही थी, क्योंकि न तो उसने सपा को कोई मदद दी और न ही सपा उनसे कोई मदद लेने को तैयार थी।”
कांग्रेस ने 24 अक्टूबर को उपचुनावों से अलग रहने का फैसला किया था और 25 अक्टूबर को सभी नौ विधानसभा सीट पर समन्वय समितियों की घोषणा की थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसके ‘पीछे हटने’ के कदम के बावजूद उसके कार्यकर्ता सभी नौ सीट पर उपचुनाव लड़ रहे सपा के उम्मीदवारों का समर्थन करें।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख अजय राय ने महाराष्ट्र से फोन पर ‘पीटीआई—भाषा’ से कहा, ”हमारे कार्यकर्ताओं ने सभी सीट पर सपा का पूरा समर्थन किया, लेकिन अगर आप दोनों दलों के नेताओं के उपचुनावों के दौरान मंच साझा नहीं करने के बारे में पूछना चाहते हैं तो इसका कारण यह है कि हममें से ज्यादातर नेता महाराष्ट्र में प्रचार कर रहे थे।”
सपा के उपचुनाव अभियान की अगुवाई पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा राम गोपाल यादव तथा शिवपाल यादव ने की। इस दौरान सपा नेताओं ने भाजपा पर निशाना साधा।
सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बताया, ”जो लोग हमारे गठबंधन को लेकर तरह—तरह की बातें कर रहे हैं, उनके लिये मैं कहना चाहूंगा कि सपा-कांग्रेस गठबंधन में सब कुछ ठीक है। कांग्रेस ने समन्वय समितियां बनाई थीं और इससे आपसी तालमेल बनाने में मदद मिली। महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव प्रचार में नेताओं के व्यस्त होने की वजह से उत्तर प्रदेश में नौ सीट पर हो रहे उपचुनाव में दोनों दलों के नेताओं की कोई संयुक्त रैली नहीं हो सकी।”
चौधरी ने कहा, ”संयुक्त रैलियां नहीं होने का अलग मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए, क्योंकि उत्तर प्रदेश के उपचुनाव महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनावों के साथ ही हो रहे हैं। मुझे लगता है कि जमीनी स्तर पर दोनों दलों के बीच समन्वय ठीक था।”
कांग्रेस चुनाव समिति (सीईसी) के सदस्य और पार्टी के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया ने कहा, ”यह सच है कि हमारे कार्यकर्ता चाहते थे कि पार्टी चुनाव लड़ें, लेकिन साथ ही हमारा बड़ा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि हमारा गठबंधन भाजपा को हराए। इसीलिए उपचुनाव से बाहर होने के बाद कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी का पूरा समर्थन किया।”
इससे पहले, कांग्रेस के 24 अक्टूबर के उपचुनाव न लड़ने के फैसले पर काफी चर्चा हुई थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में गठबंधन को कुल 43 सीट (सपा 37 और कांग्रेस छह सीटें) पर जबर्दस्त सफलता मिलने के बावजूद कांग्रेस का ‘उपचुनाव से पीछे हटना’ हरियाणा विधानसभा चुनाव में उसकी अप्रत्याशित हार के बाद हुआ था।
हरियाणा के नतीजों के तुरंत बाद सपा ने उत्तर प्रदेश की कुछ सीट पर एकतरफा उम्मीदवार घोषित कर दिए थे। इनमें वे सीट भी शामिल थीं जिन पर कांग्रेस अपने उम्मीदवार खड़े करना चाहती थी।
कांग्रेस के पूर्व नेता नदीम अशरफ जायसी ने कांग्रेस के उपचुनाव नहीं लड़ने के फैसले पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ”इससे कांग्रेस के कार्यकर्ता भ्रमित हो गए हैं। पहले आप उपचुनाव वाले सभी निर्वाचन क्षेत्रों में संविधान बचाओ संकल्प सम्मेलन आयोजित करते हैं, फिर अचानक चुनाव से हटने से पहले यह धारणा बनाते हैं कि दोनों गठबंधन सहयोगी बराबर की संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। यह बहुत भ्रमित करने वाला है।”
भाषा मनीष सलीम नोमान
नोमान