‘द सैटेनिक वर्सेज’ की भारत में बिक्री दोबारा शुरू होने से मुस्लिम संगठन नाराज,फिर प्रतिबंध की अपील

'द सैटेनिक वर्सेज' की भारत में बिक्री दोबारा शुरू होने से मुस्लिम संगठन नाराज,फिर प्रतिबंध की अपील

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  • Publish Date - December 25, 2024 / 11:48 PM IST,
    Updated On - December 25, 2024 / 11:48 PM IST

लखनऊ, 25 दिसंबर (भाषा) मुस्लिम संगठनों ने लेखक सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ की भारत में बिक्री शुरू होने की कड़ी निंदा करते हुए केन्द्र सरकार से इस पर पाबंदी जारी रखने की अपील की है।

देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद (एएम) की उत्तर प्रदेश इकाई के कानूनी सलाहकार मौलाना काब रशीदी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से रुश्दी की किताब की भारत में फिर से बिक्री शुरू होने पर चिंता जताते हुए कहा, ”अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी की भावना को ठेस पहुंचाती है तो वह कानूनन अपराध है। द सैटेनिक वर्सेज ईश निंदा से भरी किताब है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसी विवादास्पद किताब की बिक्री को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह संविधान की आत्मा के खिलाफ है।”

उन्होंने कहा, ”भारत के संविधान की बुनियाद पर देखें तो अभिव्यक्ति की आजादी आपका अधिकार है मगर उसमें यह तो कहीं नहीं लिखा है कि आप किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाएं। सैटेनिक वर्सेज किताब की बिक्री दोबारा शुरू करना उकसावे की कोशिश है। इसे रोकना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर सरकार इसकी इजाजत देती है तो यह संवैधानिक कर्तव्यों से मुंह मोड़ने के जैसा होगा।”

रशीदी ने कहा, ”मुस्लिम अल्लाह और रसूल को अपनी जान से ज्यादा प्यारा मानते हैं। ऐसे में सैटेनिक वर्सेज को वह कतई बरदाश्त नहीं करेंगे। सरकार से अपील है कि वह संविधान के मूल्यों और आत्मा की रक्षा करे और इस किताब पर फिर से प्रतिबंध लगाये क्योंकि यह देश के एक बड़े तबके की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है। सरकार ने संविधान की शपथ ली है लिहाजा इस किताब पर पाबंदी लगाना उसका फर्ज भी है।”

ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार सलमान रुश्दी की विवादास्पद पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रतिबंधित किये जाने के करीब 36 साल बाद खामोशी से भारत वापस आ गयी है।

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली स्थित ‘बाहरीसन्स बुकसेलर्स’ में इस पुस्तक का ‘सीमित स्टॉक’ बिक रहा है। इस किताब की विषय-वस्तु और लेखक के विरुद्ध काफी हंगामा हुआ और दुनिया भर के मुस्लिम संगठनों ने इसे ईशनिंदा वाला माना था।

आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने भी इस विवादास्पद किताब की भारत में दोबारा बिक्री शुरू होने की निंदा करते हुए कहा, ”36 साल बाद सलमान रुश्दी की किताब सैटेनिक वर्सेज पर हिंदुस्तान में लगी पाबंदी हटने की बात हो रही है। मैं शिया पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से भारत सरकार से अपील करता हूं कि इस विवादास्पद किताब पर पूरी तरह पाबंदी लगी रहनी चाहिये”

उन्होंने कहा, ”क्योंकि इसमें मुस्लिम नजरियात (दृष्टिकोण) का मजाक उड़ाया गया है। भावनाओं से खिलवाड़ किया गया है। मुहम्मद साहब और उनके सहयोगियों का भी अपमान किया गया है लिहाजा इस किताब पर पूरी तरीके से प्रतिबंध लगना चाहिये। अगर यह किताब बाजार में आती है तो एक बार फिर से मुल्क का माहौल खराब होने का खतरा है, लिहाजा मैं प्रधानमंत्री से अपील करूंगा कि सलमान रुश्दी की इस किताब पर भारत में पूरी तरह से प्रतिबंध लगायें।”

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी ने एक बयान में कहा, ”सलमान रुश्दी की किताब द सैटेनिक वर्सेज पर लगाई गई पाबंदी की मुद्दत खत्म हो गई है। अब कुछ प्रकाशक भारत में इसे दोबारा छापने की योजना बना रहे हैं। साल 1988 में राजीव गांधी की हुकूमत ने इस किताब पर फौरी तौर पर पाबंदी लगा दी थी, मगर अब वो पाबंदी खत्म होने के बाद भारत में किताब के प्रचार-प्रसार के लिए तैयारियां चल रही है।”

उन्होंने कहा, ”इस किताब में इस्लाम और मुहम्मद साहब के साथ ही साथ अनेक इस्लामी हस्तियों का अपमान किया गया है। किताब में ऐसे-ऐसे जुमले लिखे हैं जिसको दोहराया नहीं जा सकता। यह किताब बाजार में आ जाने से देश का माहौल खराब होगा। कोई भी मुसलमान इस घृणित किताब को किसी भी बुक स्टॉल पर नहीं देख सकता।”

रजवी ने केंद्र सरकार से मांग की है वह इस किताब पर दोबारा पाबंदी लगाये। अगर किताब बाजार में आई मुस्लिम समाज जबरदस्त विरोध करेगा।

‘द सैटेनिक वर्सेज’ इस वक्त दिल्ली-एनसीआर में ‘बाहरीसन्स बुकसेलर्स’ स्टोर पर उपलब्ध है। वर्ष 1988 में इस किताब पर पाबंदी लगा दी गयी थी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने नवंबर में उपन्यास के आयात पर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर कार्यवाही बंद कर दी थी और कहा था कि चूंकि अधिकारी प्रासंगिक अधिसूचना पेश करने में विफल रहे हैं, इसलिए यह ‘मान लिया जाना चाहिए कि वह मौजूद ही नहीं है।’

यह आदेश तब आया जब सरकारी अधिकारी पांच अक्टूबर 1988 की अधिसूचना प्रस्तुत करने में विफल रहे जिसमें पुस्तक के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया था।

भाषा सलीम शोभना

शोभना