प्रयागराज: Allahabad High Court Judgement भारत में इन दिनों दहेज प्रताड़ना के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है। रोजाना घरेलू कलह के हजारों मामले कोर्ट तक पहुंच रहे हैं। लेकिन कई ऐसे भी मामले होतें हैं जो ससुराल वालों को परेशान करने के लिए दर्ज कराए जाते हैं। ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला देते हुए पति के रिश्तेदारों के खिलाफ लगाई गई याचिका को खारिज कर दिया है। वहीं, कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए ये भी कहा कि ”कम दहेज मिलने पर ताना देना अपने आप में अपराध नहीं है।”
Allahabad High Court Judgement मिली जानकारी के अनुसार एक महिला ने अपने पति और रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज में कार नहीं मिलने पर ताना देने का आरोप लगाया था। महिला का ये भी आरोप था कि उनके ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया और उन्हें ऐसी दवाएं दी गई जिसससे उसकी तबीयत बिगड़ गई थी। मामले को लेकर महिला ने 2 नवंबर को पति और ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोप स्पष्ट होने चाहिए, जिसमें आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए प्रत्येक सदस्य द्वारा निभाई गई विशिष्ट भूमिकाओं पर प्रकाश डाला जाए। अदालत ने पाया कि आईपीसी की धारा 498ए, 323, 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत मामला जांच अधिकारी द्वारा मांग के संबंध में सूचक-पत्नी, उसके पिता और उसकी मां के बयानों सहित अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद दर्ज किया गया। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिए गए बयानों में पति के अलावा आवेदकों की भूमिका को रेखांकित करने वाला कोई विशेष आरोप नहीं बताया गया।
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अदालत ने माना कि चूंकि शिकायतकर्ता ने छेड़छाड़ और शारीरिक हमले का आरोप लगाते समय आवेदकों के अपराध और भूमिका का विवरण नहीं दिया, इसलिए उनके खिलाफ आपराधिक मामले चलने योग्य नहीं है। तदनुसार, सूचक पत्नी की विवाहित भाभी, बहनोई और अविवाहित भाभी के खिलाफ आपराधिक शिकायतें रद्द कर दी गईं।