Allahabad High Court on Rape Case

Allahabad High Court on Rape Case: ‘महिला का स्तन पकड़ना या पैजामे का नाड़ा खोलना रेप नहीं…’ हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में सुनाया अहम फैसला

Allahabad High Court on Rape Case: 'महिला का स्तन पकड़ना या पैजामे का नाड़ा खोलना रेप नहीं...' हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में सुनाया अहम फैसला

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Modified Date: March 20, 2025 / 12:54 PM IST
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Published Date: March 20, 2025 12:54 pm IST
HIGHLIGHTS
  • रेप के प्रयास का मामला नहीं
  • संशोधित धाराएं लागू
  • बलात्कार के इरादे का कोई ठोस प्रमाण नहीं

प्रयागराज: Allahabad High Court on Rape Case देश में रोजाना रेप और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आए दिन अलग-अलग राजयों से ऐसी सैकड़ों घटनाएं सामने आ रही है। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कानून का गलत उपयोग करते हुए लोगों को ​झूठे मामलों में फंसाकर कोर्ट के चक्कर लगवाते हैं। ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि “स्तनों को पकड़ना, उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना… बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

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Allahabad High Court on Rape Case मामले में अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपियों (पवन और आकाश) ने 11 वर्षीय पीड़िता के स्तन पकड़े और आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया एवं उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। हालांकि इस बीच लोगों के आने से आरोपी पीड़िता को छोड़कर भाग गए। संबंधित ट्रायल कोर्ट ने इसे पॉक्सो एक्ट के दायरे में रेप की कोशिश या यौन उत्पीड़न के प्रयास का मामला पाते हुए एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के साथ आईपीसी की धारा 376 को लागू किया और इन धाराओं के तहत सम्मन आदेश किया।

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हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपियों पर लगाए गए आरोप और मामले के तथ्यों के आधार पर इस मामले में रेप की कोशिश का अपराध नहीं बनता। इसकी बजाय उन्हें आईपीसी की धारा 354 (बी) यानी पीड़िता को निर्वस्त्र करने या उसे नग्न होने के लिए मजबूर करने के इरादे से हमला या दुर्व्यवहार करने और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 (एम) के तहत आरोप के तहत तलब किया जा सकता है।

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हाईकोर्ट ने दलीलों की पृष्ठभूमि में और आरोपियों पर आरोपों को ध्यान में रखते हुए कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि आरोपियों ने पीड़िता के साथ रेप करने का निश्चय किया था। कोर्ट ने यह भी माना कि शिकायत में या सीआरपीसी की धारा 200/202 के तहत दर्ज गवाहों के बयान में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी आकाश नाबालिग पीड़िता के निचले वस्त्र की डोरी तोड़ने के बाद खुद परेशान हो गया था।

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कोर्ट ने कहा कि आकाश पर विशेष आरोप यह है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसके पजामे का नाड़ा तोड़ दिया। गवाहों ने यह भी नहीं बताया कि आरोपी के इस कृत्य के कारण पीड़िता नग्न हो गई या उसके कपड़े उतर गए। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता के खिलाफ़ यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों को आईपीसी की धारा 354 (बी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 के तहत अपराधों के लिए भी सम्मन किया जा सकता है। इसी के साथ कोर्ट ने सम्मन आदेश को संशोधित करते हुए विशेष अदालत को संशोधित धाराओं के तहत पुनरीक्षणकर्ताओं के संबंध में नया सम्मन आदेश करने का निर्देश दिया।

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हाईकोर्ट ने किस आधार पर कहा कि यह रेप का प्रयास नहीं है?

कोर्ट ने पाया कि इस केस में रेप की नीयत का कोई ठोस सबूत नहीं है। केवल स्तन पकड़ना या पायजामे का नाड़ा खोलना बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता।

क्या आरोपियों को बरी कर दिया गया है?

नहीं, हाईकोर्ट ने सिर्फ IPC 376 और पॉक्सो की धारा 18 हटाई है, लेकिन आरोपियों पर IPC 354(B) और पॉक्सो 9(एम) के तहत केस चलेगा।

क्या यह फैसला महिला सुरक्षा को कमजोर करेगा?

यह फैसला सिर्फ इस विशेष मामले पर आधारित है। कोर्ट ने कहा कि रेप के प्रयास का मामला तभी बनता है, जब आरोपियों की स्पष्ट नीयत रेप करने की हो।

IPC 354(B) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9(एम) क्या हैं?

IPC 354(B): किसी महिला को जबरन निर्वस्त्र करने या ऐसा प्रयास करने पर सजा देती है। पॉक्सो 9(एम): 12 साल से कम उम्र की नाबालिग से अश्लील हरकत करने पर लागू होता है।

क्या इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?

हां, यदि अभियोजन पक्ष या पीड़िता सुप्रीम कोर्ट में अपील करता है, तो यह मामला फिर से सुना जा सकता है।
 
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