Allahabad High Court on Rape Case: 'महिला का स्तन पकड़ना या पैजामे का नाड़ा खोलना रेप नहीं...' / Image Source: High Court Website
प्रयागराज: Allahabad High Court on Rape Case देश में रोजाना रेप और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आए दिन अलग-अलग राजयों से ऐसी सैकड़ों घटनाएं सामने आ रही है। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कानून का गलत उपयोग करते हुए लोगों को झूठे मामलों में फंसाकर कोर्ट के चक्कर लगवाते हैं। ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि “स्तनों को पकड़ना, उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना… बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
Allahabad High Court on Rape Case मामले में अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपियों (पवन और आकाश) ने 11 वर्षीय पीड़िता के स्तन पकड़े और आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया एवं उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। हालांकि इस बीच लोगों के आने से आरोपी पीड़िता को छोड़कर भाग गए। संबंधित ट्रायल कोर्ट ने इसे पॉक्सो एक्ट के दायरे में रेप की कोशिश या यौन उत्पीड़न के प्रयास का मामला पाते हुए एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के साथ आईपीसी की धारा 376 को लागू किया और इन धाराओं के तहत सम्मन आदेश किया।
हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपियों पर लगाए गए आरोप और मामले के तथ्यों के आधार पर इस मामले में रेप की कोशिश का अपराध नहीं बनता। इसकी बजाय उन्हें आईपीसी की धारा 354 (बी) यानी पीड़िता को निर्वस्त्र करने या उसे नग्न होने के लिए मजबूर करने के इरादे से हमला या दुर्व्यवहार करने और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 (एम) के तहत आरोप के तहत तलब किया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने दलीलों की पृष्ठभूमि में और आरोपियों पर आरोपों को ध्यान में रखते हुए कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि आरोपियों ने पीड़िता के साथ रेप करने का निश्चय किया था। कोर्ट ने यह भी माना कि शिकायत में या सीआरपीसी की धारा 200/202 के तहत दर्ज गवाहों के बयान में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी आकाश नाबालिग पीड़िता के निचले वस्त्र की डोरी तोड़ने के बाद खुद परेशान हो गया था।
कोर्ट ने कहा कि आकाश पर विशेष आरोप यह है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसके पजामे का नाड़ा तोड़ दिया। गवाहों ने यह भी नहीं बताया कि आरोपी के इस कृत्य के कारण पीड़िता नग्न हो गई या उसके कपड़े उतर गए। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता के खिलाफ़ यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों को आईपीसी की धारा 354 (बी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 के तहत अपराधों के लिए भी सम्मन किया जा सकता है। इसी के साथ कोर्ट ने सम्मन आदेश को संशोधित करते हुए विशेष अदालत को संशोधित धाराओं के तहत पुनरीक्षणकर्ताओं के संबंध में नया सम्मन आदेश करने का निर्देश दिया।