लखनऊः Pilibhit Lok Sabha Chunav 2024 देश में लोकसभा चुनाव के लिए कल पहले चरण के तहत 102 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। वोटिंग के चलते अभी से सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद कर दिया गया है। वोटिंग के लिए चुनाव आयोग ने भी सभी तैयारियां कर रखी हैं। उत्तर प्रदेश की आठ सीटों में भी शुक्रवार को वोट डाले जाएंगे। इनमें पीलीभीत लोकसभा सीट भी शामिल है। पीलीभीत लोकसभा सीट से बीजेपी ने इस बार युवा चेहरे वरुण गांधी की बजाए, यूपी सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद (Jitin Prasada) को मौका दिया है। उनके खिलाफ समाजवादी पार्टी ने भागवत सारण गंगवार को प्रत्याशी बनाया है, जो कि बरेली जिले का रहने वाले हैं। बसपा ने अनीस अहमद खां को मैदान में उतारा है।
2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक पीलीभीत की जनसंख्या लगभग 20 लाख से ज्यादा थी और यहां प्रति वर्ग किलोमीटर 551 लोग रहते हैं। पीलीभीत की 61.47 फीसदी जनसंख्या साक्षर है। इनमें पुरुष 71.70 फीसदी और महिलाओं की साक्षरता दर 50.00 फीसदी है।
उत्तर प्रदेश में अमेठी और रायबरेली के अलावा पीलीभीत वो लोकसभा सीट है जिसे देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है। पीलीभीत में 30 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है।
Pilibhit Lok Sabha Chunav 2024 पीलीभीत लोकसभा सीट के संसदीय इतिहास की बात करें तो यहां पर 1990 के बाद से बीजेपी का ज्यादातर कब्जा रहा है। 1952 के चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत से शुरुआत की थी, लेकिन वह अब तक महज 4 बार ही चुनाव में जीत सकी है। इसके बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर मोहन स्वरूप ने जीत की हैट्रिक लगाई। फिर वह कांग्रेस के टिकट पर 1971 का चुनाव लड़े और जीत हासिल की। 1977 में हुए चुनाव में पीलीभीत सीट पर खास परिणाम देखने को मिला था। इस चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर नवाब शमशुल हसन खान को जीत मिली थी। 1980 में हरीश कुमार गंगवार तो 1984 में कांग्रेस के भानुप्रताप सिंह सांसद बनने में कामयाब रहे थे। लेकिन 1989 के चुनाव के बाद में पीलीभीत सीट का इतिहास बदल गया। 1989 में मेनका गांधी जनता दल के टिकट पर सांसद बनी थीं। 1991 में बीजेपी के परशुराम गंगवार सांसद बने और पार्टी का खाता खुला। फिर 1996 में जनता दल के टिकट पर मेनका गांधी फिर से सांसद चुनी गईं। 1998 और 1999 में वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनी गईं, बाद में वह बीजेपी में आ गईं और 2004 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतीं।
2009 के चुनाव में मेनका गांधी ने अपने बेटे वरुण गांधी के लिए पीलीभीत सीट छोड़ दी, और तब वरुण ने भी जीत हासिल की। हालांकि 2014 के चुनाव में वह फिर से पीलीभीत से चुनाव लड़ने आईं और बीजेपी के टिकट पर विजयश्री हासिल कीं। वह पीलीभीत सीट से छठी बार सांसद बनने में कामयाब रही थीं। 2019 के चुनाव में मेनका गांधी ने एक बार फिर बेटे वरुण गांधी के लिए यह सीट छोड़ दी। वरुण ने यहां पर 2,55,627 मतों के अंतर से जीत हासिल कीं। खुद मेनका गांधी सुलतानपुर चली गईं और वहां से चुनाव लड़ते हुए संसद पहुंचीं। मेनका गांधी 2 बार जनता दल, 2 बार बीजेपी और 2 बार निर्दलीय चुनाव जीतने में कामयाब रही थीं।
2014 के लोकसभा चुनाव में पीलीभीत में कुल 62.9% मतदान हुआ जिसमें बीजेपी की मेनका गांधी को 52 फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले और उन्होंने चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की। मेनका गांधी को 52.1% और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 22.8% वोट हासिल हुए थे।
2019 में कुल 13 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के वरुण गांधी, समाजवादी पार्टी के हेमराज वर्मा और जनता दल यूनाइटेड के डॉक्टर भरत के बीच था। यहां से 6 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में थे। चुनाव में इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी वरुण गांधी ने जीत दर्ज की, उन्हें 7,04,549 वोट मिले थे। वहीं सपा के हेमराज वर्मा 4,48,922 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे और 9,973 मतदाताओं ने नोटा वोट दिया था।
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