जौनपुर (उप्र), 17 दिसंबर (भाषा) जौनपुर की एक अदालत ने उच्चतम न्यायालय के सभी अदालतों को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के तहत धार्मिक स्थलों से संबंधित मामलों में आदेश पारित करने से परहेज करने के निर्देश के मद्देनजर यहां अटाला मस्जिद के सर्वेक्षण क लिए आदेश पारित करने की तारीख अगले साल दो मार्च तक टाल दी है।
हिंदू पक्ष ने मांग की है कि विवादित संपत्ति को ‘अटला देवी मंदिर’ घोषित किया जाए और सनातन धर्म के अनुयायियों को इस स्थल पर पूजा करने का अधिकार दिया जाए।
जिला शासकीय अधिवक्ता सतीश चंद्र पांडेय ने बताया कि दीवानी न्यायाधीश ( जूनियर डिवीजन) सुधा शर्मा की अदालत ने सोमवार को अटाला मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए आदेश पारित करने की तिथि अगले साल दो मार्च तक के लिए टाल दी।
उन्होंने बताया कि स्वराज वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष वादी संतोष मिश्रा के अधिवक्ता के पूर्व में दिए गए प्रार्थना पत्र पर बहस हुई थी। अदालत ने सुनवाई के लिए 16 दिसंबर की तारीख नियत की थी।
पांडेय ने बताया कि प्रतिवादी के अधिवक्ता ने उच्चतम न्यायालय के 12 दिसंबर 2024 के आदेश की प्रति दाखिल की। अदालत ने कहा कि चूंकि शीर्ष न्यायालय में वाद विचाराधीन है इसलिए यह निर्देशित किया जाता है कि कोई भी कार्यवाही उच्चतम न्यायालय द्वारा उपासना स्थल अधिनियम के सिलसिले में अगला आदेश दिये जाने तक नहीं की जाएगी।
उन्होंने बताया कि स्वराज वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष संतोष कुमार मिश्रा ने एक वाद दायर किया था, जिसमें दावा किया गया था कि जौनपुर के सिपाह मुहल्ले में स्थित अटाला मस्जिद दरअसल ‘अटला देवी’ मंदिर था। वाद में कहा गया है कि 13वीं शताब्दी में राजा विजय चंद्र ने अटला देवी की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवाया था जिसमें लोग पूजा कीर्तन करते थे। बाद में फिरोज शाह तुगलक ने जौनपुर पर आक्रमण करके अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
मिश्रा ने वाद में दावा किया, “ तुगलक ने अटला देवी मंदिर की भव्यता देखकर उसमें तोड़फोड़ करायी मगर हिंदू धर्मावलंबियों के प्रबल विरोध के कारण वह मंदिर को पूरी तरह तोड़ नहीं पाया और मंदिर के खंभों पर ही मस्जिद का निर्माण करा दिया। यही वर्तमान में अटाला मस्जिद है।”
वाद में कहा गया है कि यह तथ्य इतिहासकार अबुल फजल की रचना ‘आईने अकबरी’ एवं अन्य रचनाओं में पूरी तरह स्पष्ट है।
हाल में उत्तर प्रदेश की विभिन्न अदालतों में मंदिर-मस्जिद विवादों से संबंधित कई मामले दायर किये गये हैं। इनमें वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद, संभल में शाही जामा मस्जिद और बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी को मंदिर बताये जाने के दावे शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि वे इबादतगाहें प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने के बाद बनायी गयी थीं। संभल में अदालत के आदेश पर 24 नवंबर को हुए सर्वेक्षण के विरोध में हिंसा भड़क गई थी जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी।
भाषा सं सलीम नोमान
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