गोरखपुर (उप्र), 15 सितंबर (भाषा) राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने रविवार को कहा कि यह मानना गलत है कि भारत में लोकतंत्र की शुरुआत 26 जनवरी 1950 को हुई। उन्होंने यह भी कहा कि एक ही अवधि के दौरान लोकतंत्र अपनाने वाले पड़ोसी देशों में लोकतंत्र ही नहीं है।
हरिवंश ने कहा कि वर्ष 1947-48 के दौरान जब चीन ने अपनी राजनीतिक और आर्थिक यात्रा शुरू की थी तो उसने अगले 100 वर्षों के लिए एक दस्तावेज बनाया था। भारत में यह काम 2014 के बाद शुरू हुआ।
उन्होंने महंत दिग्विजयनाथ की 55वीं और महंत अवैद्यनाथ की 10वीं पुण्यतिथि के अवसर पर गोरखपुर में आयोजित ‘लोकतंत्र की जननी है भारत’ विषयक सम्मेलन में यह टिप्पणी की।
उन्होंने कहा, ‘‘अगले साल हमारे यहां संविधान लागू करने का अमृतकाल शुरू होगा…लेकिन जब हम ऐसा कहते हैं तो इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि भारत में लोकतंत्र की शुरुआत 26 जनवरी 1950 को हुई, (क्योंकि) हमारे साथ-साथ जिन पड़ोसी देशों ने लोकतंत्र अपनाया था, वहां अब लोकतंत्र है ही नहीं।’’
हरिवंश ने चीन का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘मेरा मानना है कि हमारे एक बहुत वरिष्ठ दूरदर्शी नेता की ओर से चूक हुई है। वर्ष 1947-48 में पड़ोसी देश चीन जब अपनी राजनीतिक, आर्थिक यात्रा शुरू कर रहा था तो उसने 100 साल का एक दस्तावेज तैयार किया था। (लेकिन) भारत में यह काम 2014 के बाद हुआ, जबकि इसे पहले हो जाना चाहिए था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 1977-78 में हम चीन के बराबर थे और कुछ क्षेत्रों में चीन से आगे थे। वर्ष 1960 में हमारी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) उनसे आगे थी। उस समय जो लोग सत्ता में थे, वे चीन को करवट बदलते नहीं देख पाए।’’
उन्होंने तत्कालीन केंद्र सरकार पर केरल में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार को चलने नहीं देने का आरोप लगाया।
यूरोप के लोकतांत्रिक देशों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘रोमन लोकतंत्र क्या था? जिसे आप सही मायने में लोकतंत्र कहते हैं, वह कुछ अभिजात्य वर्गों के लिए खुला था। वहां कुछ लोगों और परिवारों का शासन था। यह लोकतंत्र नहीं था।’’
हरिवंश ने कहा, ‘‘यूरोपीय लोकतंत्र में आपको याद रखना चाहिए कि शासकों की निरंकुशता के खिलाफ विद्रोह हुए थे। अगर आप भारत को देखें तो ऐसे एक-दो उदाहरण मिल सकते हैं। कोई भी राजा निरंकुश नहीं था, क्योंकि यहां के शासक वेद, पुराण, उपनिषद और ऋषि परंपरा के मूल्यों से आबद्ध रहते थे।’’
इस अवसर पर हरिवंश ने सम्राट हर्ष और चंद्रगुप्त मौर्य का भी जिक्र किया और कहा कि भारत में त्याग और नैतिकता की परंपरा रही है।
राज्यसभा के उपसभापति ने यह भी कहा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा लोकतंत्र को परिभाषित करने से 2700 वर्ष पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया था कि राजा का सुख उसकी प्रजा के सुख में निहित है।
उन्होंने कहा कि अथर्ववेद में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का उल्लेख है।
भाषा सं सलीम
खारी सुरेश
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