(मनीष चंद्र पांडेय)
लखनऊ, तीन अक्टूबर (भाषा) फीस जमा कराने में देरी के कारण आईआईटी (भारतीय प्रौद्यागिकी संस्थान) की सीट लगभग गंवा देने वाले उत्तर प्रदेश के एक दलित छात्र का मामला सामने आने के बाद प्रदेश सरकार ने विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए राज्य के समाज कल्याण विभाग के साथ सभी आईआईटी, आईआईएम (भारतीय प्रबन्धन संस्थान) और अन्य प्रमुख संस्थानों को पंजीकृत करने की योजना बनाई है।
इस योजना के तहत पंजीकृत होने वाला पहला संस्थान आईआईटी धनबाद होगा। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को आईआईटी धनबाद को मुजफ्फरनगर के टिटोरा गांव के एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे अतुल कुमार (18) को दाखिला देने का निर्देश दिया था।
कुमार, तय समय के भीतर 17,500 रुपये की प्रवेश फीस का भुगतान करने में विफल रहा था, जिस कारण उसने आईआईटी धनबाद में ‘इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग’ पाठ्यक्रम की अपनी सीट गंवा दी थी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने बुधवार को घोषणा की थी कि वह छात्रवृत्ति के माध्यम से कुमार की पूरी फीस वहन करेगी।
राज्य सरकार अब कुमार जैसे सभी विद्यार्थियों की मदद करने की योजना बना रही है।
समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हम आईआईटी और आईआईएम सहित राज्य के बाहर स्थित सभी राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों को पंजीकरण के लिए लिखेंगे ताकि इन संस्थानों में प्रवेश लेने वाले राज्य के सभी पात्र अभ्यर्थियों को छात्रवृत्ति का निर्बाध वितरण हो सके।”
अरुण ने कहा कि उन्होंने आईआईटी धनबाद के रजिस्ट्रार से बात की है और संस्थान के बृहस्पतिवार तक समाज कल्याण विभाग के साथ पंजीकृत होने की संभावना है।
मंत्री ने कहा, “मैंने आईआईटी धनबाद के अधिकारियों से बात की है और उम्मीद है कि जब तक अतुल संस्थान पहुंचेगा, तब तक संस्थान हमारे साथ पंजीकृत हो जाएगा और भविष्य में अतुल तथा राज्य के सभी अन्य पात्र छात्रों को छात्रवृत्ति का सुचारू हस्तांतरण सुनिश्चित हो जाएगा।”
अरुण ने कहा, “अभी तक, उत्तर प्रदेश के बाहर आईआईटी जैसा कोई भी संस्थान हमारे साथ पंजीकृत नहीं है। आईआईटी धनबाद भी हमारे साथ पंजीकृत नहीं था।’’
उन्होंने कहा, “इसलिए मैंने संस्थान के रजिस्ट्रार को फोन किया, जो कन्नौज (अरुण के विधानसभा क्षेत्र) से थे। यह निर्णय लिया गया है कि आईआईटी धनबाद को तुरंत हमारे साथ पंजीकृत किया जाएगा, संभवतः बृहस्पतिवार तक ताकि छात्रवृत्ति वितरण के लिए रास्ता जल्दी तैयार किया जा सके।”
भाषा जितेंद्र नरेश
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