लखनऊ, 21 नवंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) के एक तत्कालीन पीठासीन अधिकारी के खिलाफ लगे आरोपों की जांच का आदेश सीबीआई को दिया है।
इसके साथ ही न्यायालय ने सीबीआई से 15 दिनों में की गयी कार्रवाई की रिपोर्ट भी तलब की है। मामले की अगली सुनवायी 10 दिसम्बर को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने बैंक ऑफ बड़ोदा की ओर से दाखिल एक याचिका पर दिया।
याचिका में कहा गया है कि मामले की सुनवायी कर रहे, एक तत्कालीन पीठासीन अधिकारी ने 18 सितंबर 2024 को याची बैंक के विरुद्ध एवं निजी प्रतिवादियों के पक्ष में आदेश पारित किया जबकि उस दिन पीठासीन अधिकारी अदालत में बैठे ही नहीं थे।
इसमें कहा गया कि इस अनियमितता को दूर करने के लिए पीठासीन अधिकारी ने 27 सितंबर 2024 को एक शुद्धिपत्र जारी करते हुए कहा कि 18 सितंबर 2024 के आदेश को 24 सितंबर 2024 का आदेश पढ़ा जाय।
दलील दी गई कि 24 सितंबर को याची का मुकदमा सूचीबद्ध ही नहीं था और 24 सितंबर का शुद्धिपत्र आदेश भी रिकॉर्ड पर नहीं था। यह भी बताया गया कि 27 सितंबर को ही उक्त पीठासीन अधिकारी सेवानिवृत हो गए।
न्यायालय ने सुनवायी करते हुए, डीआरटी के रजिस्ट्रार से रिपोर्ट तथा सम्बंधित रिकॉर्ड तलब किया। न्यायालय ने उक्त पीठासीन अधिकारी के स्टेनोग्राफर से जानकारी जुटाने को कहा कि 18 सितंबर 2024 को क्या उसे कोई आदेश लिखवाया गया था।
आदेश के अनुपालन में रजिस्ट्रार ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 18 सितंबर को स्टेनोग्राफर को आदेश नहीं लिखवाया गया था तथा 27 सितंबर का शुद्धिपत्र भी ‘आउटसोर्स स्टेनोग्राफर’ से लिखवाया गया।
भाषा सं जफर
राजकुमार
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