लखनऊ, छह दिसंबर (भाषा) अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने को जहां हिंदू संगठन शौर्य दिवस तो वहीं मुस्लिम संगठन काले दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन अयोध्या के मुस्लिम युवाओं की बात करें तो वे इन बातों को भुलाकर विकास के रास्ते आगे बढ़ना चाहते हैं।
छह दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के समय सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की उप समिति के सचिव आजम कादरी (40) की उम्र महज आठ साल थी।
उन्होंने कहा, “मुझे ज्यादा याद नहीं कि उस समय क्या हुआ था। उस घटना के बारे में जानकर दुख तो होता है, फिर भी हमें आगे बढ़ना है। मुझे लगता है कि यहां के मुस्लिम मंदिर-मस्जिद से परे जाकर विकास चाहते हैं।”
कादरी का बेटा अयोध्या में एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ता है। उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि सबकुछ ठीक है। कहीं जमीन का कब्जा है तो कहीं अतिक्रमण है, लेकिन जहां तक छह दिसंबर की बात है, हम सभी शांति बरकरार रखते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं।”
अयोध्या के गोलागंज में टेंट हाउस चलाने वाले 35 वर्षीय शोएब खान ने कहा, “मंदिरों से शंख की आवाज और मस्जिदों से अजान यह संकेत देती हैं कि यह प्राचीन नगरी आधुनिक तीर्थस्थल के रूप में उभर रही है। दूसरों का तो पता नहीं लेकिन मेरा कारोबार निश्चित तौर पर बढ़ा है, क्योंकि यहां आए दिन आयोजन होते रहते हैं।”
खान ने कहा, “पहले मुसलमानों में छह दिसंबर को शादियां नहीं होती थीं। अब ऐसा नहीं है। नयी पीढ़ी धार्मिक बातों में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखती। मैं मुसलमान हूं लेकिन मेरी धार्मिक पहचान मेरे काम में कभी अड़चन नहीं बनती। मैं भी छह दिसंबर, 1992 को बहुत छोटा था और मुझे याद नहीं कि तब क्या हुआ था।”
बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में वादी रहे और अयोध्या में 22 जनवरी, 2024 को प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए इकबाल अंसारी ने कहा, “राम मंदिर अब रोजगार के नए अवसर, विकास के नए रास्ते खोल रहा है। हम इस बात के गवाह हैं कि यह नगर तेजी से विकास के रास्ते आगे बढ़ रहा है। इससे सभी को फायदा होगा।”
संत महात्माओं के लिए खड़ाऊ बनाने वाले मोहम्मद आजम ने कहा, “अयोध्या खुश है और यहां अमन चैन है। खुदा कभी हिंसा को पसंद नहीं करता।”
वर्षों से मंदिरों के लिए फूलों की आपूर्ति करके जीवन यापन करने वाले मोहम्मद हाफिज ने कहा, “हम इस शहर से रोजी रोटी कमाते हैं। हम शांति चाहते हैं। उन्होंने कहा, “राम तो सबके हैं।”
भाषा मनीष राजेंद्र जोहेब
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