Publish Date - January 24, 2025 / 01:52 PM IST,
Updated On - January 24, 2025 / 02:31 PM IST
अयोध्या : Boycott of elections in Ayodhya गांव के ग्रामीणों ने चुनाव आते ही वोट का बहिष्कार प्रदर्शन किया। मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में मतदाताओं ने रोड नही तो वोट नही का बैनर लगाया हैं। बैनर लगाकर ग्रामीण अब मतदान का बहिष्कार लकरने का ऐलान किया है। मतदाताओं का कहना है कि आजादी से लेकर अबतक ग्रामसभा के कई मजरों जिनकी आबादी लगभग पांच हजार है। जिसको जोड़ने वाला एक मात्र रास्ता बद से बदतर स्थिति में है। इसे बनवाने को लेकर गांव के लोग वर्षों से प्रयासरत है। सभी राजनीतिक दलों के नेताओ से बनवाने की गुहार लगाई लेकिन उन्हें अब तक सफलता नही मिली। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में विकास नहीं होते और सड़क तक नहीं बन पा रही है। तो वह अपने मताधिकार का उपयोग क्यों करें।
Boycott of elections in Ayodhya अब थक हारकर ग्रामीणों ने चुनावी माहौल में इस मुद्दे को रोड नही तो वोट नही का फंडा अपनाते हुए बैनर लगाया है। अब देखना यह है कि ग्रामीणों का यह फंडा कितना कारगर साबित होता है।राजनीतिक दलों के नेताओ के साथ प्रशासन का ध्यान इस तरफ आकृष्ट होता है या फिर चुनाव आयोग के शत प्रतिशत मतदान के प्रचार की मुहिम दम तोड़ती है।हालांकि रोड नही तो वोट नही का यह बैनर सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है।
क्या अयोध्या में ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार किया है?
हां, अयोध्या के मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में ग्रामीणों ने "रोड नहीं तो वोट नहीं" के बैनर के साथ चुनाव का बहिष्कार किया है। उनका कहना है कि गांव में सड़क की बदहाल स्थिति के कारण वे मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे।
ग्रामीणों का मुख्य मुद्दा क्या है?
ग्रामीणों का मुख्य मुद्दा गांव के मजरों को जोड़ने वाली सड़क की खराब स्थिति है। वे वर्षों से सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं हुआ है।
क्या यह "रोड नहीं तो वोट नहीं" का फंडा चुनाव में प्रभावी होगा?
यह देखने वाली बात होगी कि ग्रामीणों द्वारा अपनाया गया "रोड नहीं तो वोट नहीं" का फंडा कितनी प्रभावशीलता से काम करता है। इससे प्रशासन और राजनीतिक दलों का ध्यान इस मुद्दे पर आएगा या नहीं, यह समय ही बताएगा।
यह बैनर सोशल मीडिया पर क्यों वायरल हो रहा है?
"रोड नहीं तो वोट नहीं" का बैनर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है क्योंकि यह ग्रामीणों का एक आंदोलन बन चुका है, जो उनकी स्थानीय समस्याओं को उठाता है और चुनावी प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है।
क्या प्रशासन इस मुद्दे पर ध्यान देगा?
प्रशासन और राजनीतिक दलों का ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित करने की उम्मीद की जा रही है, क्योंकि चुनावी माहौल में यह मुद्दा और अधिक गंभीर हो सकता है।