2024: अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के बाद उप्र में मंदिर-मस्जिद विवाद के कई मामले सामने आए

2024: अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के बाद उप्र में मंदिर-मस्जिद विवाद के कई मामले सामने आए

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  • Publish Date - January 1, 2025 / 04:36 PM IST,
    Updated On - January 1, 2025 / 04:36 PM IST

(अरुणव सिन्‍हा)

लखनऊ, एक जनवरी (भाषा) उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर में भगवान राम के बाल विग्रह के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद राज्य में कई मंदिर-मस्जिद विवाद सामने आए। ऐसे ही एक विवाद में संभल हिंसा ने पूरे देश का ध्यान खींचा। अदालत के आदेश के बाद किए गए संभल की जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान भड़की हिंसा में चार लोगों की जान चली गई।

संभल के अलावा ऐसे और भी विवाद सुर्खियां बने:

स्थानीय अदालत के आदेश पर संभल में 19 नवंबर, 2024 को एक मुगलकालीन मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया। इसके बारे में हिंदू समूहों का दावा है कि इस स्थल पर पहले हरिहर मंदिर था। इस मस्जिद में 24 नवंबर को दूसरी बार सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क उठी। प्रदर्शनकारी शाही जामा मस्जिद के पास एकत्र हुए और सुरक्षाकर्मियों से भिड़ गए। हिंसा में चार लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। इस मामले को लेकर विपक्षी राजनीतिक दलों ने सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रशासन ने 10 दिसंबर तक यहां बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।

बदायूं में एक हिंदू संगठन ने स्थानीय अदालत में याचिका दायर कर जामा मस्जिद शम्सी में पूजा करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। संगठन का दावा है कि यह मंदिर है। यह मामला 2022 का है, जब ‘अखिल भारत हिंदू महासभा’ के तत्कालीन संयोजक मुकेश पटेल ने दावा किया था कि मस्जिद की जगह पर नीलकंठ महादेव मंदिर था। पटेल ने दावा किया कि राजा महिपाल के किले में स्थित नीलकंठ मंदिर को गुलाम वंश के शासक और आक्रमणकारी शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने तोड़कर मस्जिद में बदल दिया था। इस मामले में 18 जनवरी को सुनवाई होनी है।

वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में हिंदुओं का दावा है कि उस जगह पर मंदिर था और 17वीं सदी में औरंगजेब के आदेश पर इसे तोड़ दिया गया था। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता मदन मोहन यादव का दावा है कि ज्ञानवापी मंदिर या आदि विश्वेश्वर काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को औरंगजेब के आदेश के बाद 18 अप्रैल, 1679 को तोड़ दिया गया था।

यादव ने कहा कि औरंगजेब के सचिव वजीर साकी मुस्तैद खान ने अपनी डायरी ‘माआसिरे आलमगीरी’ में इसका जिक्र किया है, जो एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता में सुरक्षित है। ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित है।

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में विवाद शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है जो औरंगजेब के समय में बनाई गई थी। आरोप है कि मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई थी। हालांकि, विवाद में मुस्लिम पक्ष (शाही ईदगाह की प्रबंधन समिति और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड) ने कई आधारों पर याचिका का विरोध किया है।

लखनऊ में अपर जिला सत्र न्यायाधीश ने 28 फरवरी को एक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी, जिसमें टीले वाली मस्जिद के पास स्थित लक्ष्मण टीला में पूजा करने के अधिकार के अनुरोध वाले एक दीवानी मुकदमे के खिलाफ दायर आपत्ति को खारिज करने संबंधी निचली निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी।

हिंदू पक्ष द्वारा दायर दीवानी मुकदमे के अनुसार, मस्जिद के पास ही शेष नागेश टीलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। वादी नृपेंद्र पांडे और अन्य ने दीवानी न्यायाधीश के समक्ष प्रतिनिधि की हैसियत से मुकदमा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि मुगल शासक औरंगजेब के समय लक्ष्मण टीला को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था और उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया था, जिसे अब टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जाता है।

हिंदू पक्ष ने दलील दी है कि वहां अब भी शेष नागेश टीलेश्वर महादेव और शेष नागेश पाताल कूप का मंदिर मौजूद है।

फरवरी में बागपत की एक अदालत ने एक स्थल को लेकर मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर दशकों पुरानी याचिका को खारिज कर दिया, जिसके बारे में हिंदू श्रद्धालुओं का मानना है कि यह महाभारत काल का ‘‘लाक्षागृह’’ है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि यह एक कब्रिस्तान था और सूफी संत शेख बदरुद्दीन की दरगाह थी।

प्रतिवादियों के वकील रणवीर सिंह तोमर के अनुसार, जिला एवं सत्र न्यायालय के दीवानी न्यायाधीश जूनियर डिवीजन शिवम द्विवेदी ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि बरनावा में इस स्थल पर न तो कोई कब्रिस्तान है और न ही कोई दरगाह है।

जौनपुर की एक अदालत ने 16 दिसंबर को अटाला मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए आदेश पारित करने की तिथि को उच्चतम न्यायालय के आदेश के मद्देनजर दो मार्च, 2025 तक के लिए स्थगित कर दिया।

शीर्ष अदालत ने अपने अगले आदेश तक सभी अदालतों को उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत धार्मिक स्थलों से संबंधित मामलों में आदेश पारित करने से परहेज करने के निर्देश दिए हैं।

अटाला मस्जिद मामले में संगठन ‘स्वराज वाहिनी एसोसिएशन’ के अध्यक्ष संतोष कुमार मिश्रा ने मुकदमा दायर किया था। याचिका में विवादित संपत्ति को ‘अटाला देवी मंदिर’ घोषित करने और सनातन धर्म के अनुयायियों को इस स्थान पर पूजा करने का अधिकार देने का अनुरोध किया गया है।

इन मामलों में अदालतों द्वारा कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया गया है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने 12 दिसंबर को देश की सभी अदालतों को इस तरह के मामलों में सुनवाई करने से रोक दिया था।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने यह निर्देश उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित याचिकाओं के संदर्भ में दिया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने 16 दिसंबर को कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद से कुछ लोग यह मानने लगे हैं कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर ‘‘हिंदुओं के नेता’’ बन सकते हैं।

पुणे में सहजीवन व्याख्यानमाला में ‘भारत-विश्वगुरु’ विषय पर व्याख्यान देते हुए भागवत ने ‘‘समावेशी समाज’’ की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘‘हर दिन एक नया मामला (विवाद) सामने आ रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम साथ-साथ रह सकते हैं।’’

इस मुद्दे पर लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और अलग-अलग तर्क दिए हैं।

न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) डीपी सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 संसद द्वारा पारित किया गया था और यह किसी भी धार्मिक संरचना को ध्वस्त करने की अनुमति नहीं देता है। उच्चतम न्यायालय ने देश की सभी अदालतों को अधिनियम के तहत धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण सहित राहत के अनुरोध वाले किसी भी मुकदमे पर कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया है और अब तक, शीर्ष अदालत ने इसे रद्द नहीं किया है।’’

सिंह ने कहा, ‘‘संभल में मजिस्ट्रेट द्वारा सर्वेक्षण का आदेश दिया जाना कानून की भावना के विरुद्ध था। मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार और मस्जिद प्रबंधन को नोटिस जारी करना चाहिए था और उसके बाद, सर्वेक्षण कार्य के लिए वकीलों या अदालत के अमीन को नियुक्त किया जाना चाहिए था। इसमें कोई जल्दबाजी नहीं थी।’’

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के अधिवक्ता अंकुर सक्सेना ने अलग तर्क देते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘जल्द या बाद में, धर्मनिरपेक्षता का यह दिखावा और बोझ, जिसे हम ढोते आए हैं, किसी न किसी समय टूटना ही था। सत्यमेव जयते। मेरे विचार से समस्या पिछली सरकारों द्वारा अपनाई गई तुष्टीकरण नीति के कारण पैदा हुई है।’’

सक्सेना ने कहा, ‘‘हमारे मुस्लिम भाइयों को भी ईसाइयों की तरह भारत के संविधान और कानून पर विश्वास करना चाहिए।’’

अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा, ‘‘जिस तरह से राम जन्मभूमि मामले का फैसला हुआ, उसी तरह से मंदिरों के साक्ष्य से जुड़े मामलों का भी अदालत द्वारा फैसला किया जाना चाहिए (‘जैसे राम जन्मभूमि का निर्णय हुआ, वैसे ही जितने भी मंदिरों के सबूत मिलेंगे, उन सबका निर्णय अदालत से हो)।’’

‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के वरिष्ठ सदस्य खालिद रशीद फरंगी महली ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम पहले दिन से यही कह रहे हैं कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को अक्षरशः लागू किया जाए, जो ऐसे मामलों में सबसे बेहतर उपाय है। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक (संभल जैसी घटना) घटनाएं होती रहेंगी। यह सांप्रदायिक सौहार्द और देश की प्रगति के लिए ठीक नहीं है।’’

भाषा अरुणव मनीष आनन्‍द मनीषा नेत्रपाल

नेत्रपाल