नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन क़ानून का नोटिफिकेशन जारी हो चुका हैं। सरकार ने एक तरह से चुनाव के ठीक पहले इस कानून के जरिये चुनावी फायदा लेने की कोशिश की है। (kab lagu hoga caa kanoon) भारत में बड़ी संख्या में पड़ोसी देशों से आये प्रवासी रहते हैं ऐसे में उन्हें नागरिकता प्रदान करने की बात कह कर बीजेपी ने ना सिर्फ प्रवासी वोटर्स बल्कि भारतीय हिन्दुओं को भी साधने की कोशिश की हैं। भाजपा ने खुद को फिर से एक बार न सिर्फ भारत बल्कि भारत के बाहर रह रहे हिंदुओ के हितैषी दिखाने का प्रयास किया हैं।
बहरहाल इस कानून को लेकर देश में सीधे तौर पर दो फाड़ की स्थिति हैं। भाजपा और उनके गठबंधन दल जहां पुरजोर तरीके से इस कानून के पक्ष में हैं और इसे जल्द से जल्द लागू करने का प्रयास कर रहे हैं तो वही दूसरी तरफ विपक्ष इसे लेकर सड़क पर उतर चुका हैं। सीएए राज्यों में सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा हैं जहां क्षेत्रीय पार्टी की सरकारें हैं। हालाँकि कांग्रेस शासित राज्यों में विरोध के सुर उतने बुलंद नहीं हैं लेकिन फिर वेस्ट बंगाल में ममता बनर्जी हो, केरल में पिनरई विजयन या फिर दिल्ली केजरीवाल। तीनों ही मुख्यमंत्री मुखरता से इस कानून का विरोध कर रहे हैं। केरल में तो बाकायदा इस कानून के विरोध में प्रस्ताव को पास कराया जा चुका है जबकि ममता बनर्जी लोगों से इस पोर्टल के तहत आवदेन नहीं करने की अपील कर रही हैं।
मुख्यमंत्रियों के इस विरोध के बीच सवाल उठता हैं कि क्या राज्यों के पास यह अधिकार हैं कि वह केंद्र के इस कानून को राज्यों में लागू होने से रोक सके? इसका जवाब हैं नहीं। आसान भाषा में समझे तो यह केंद्र का विषय हैं यानी नागरिकता से जुड़े कानूनों पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होता हैं। (kab lagu hoga caa kanoon) सिटिजनशिप के साथ ही रक्षा, कूटनीति, बैंकिंग, परमाणु और दूरसंचार से जुड़े फैसले समेत करीब 100 महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले केंद्र ही ले सकता हैं। संवैधानिक भाषा में इन्हे संघ सूची कहा गया हैं। इसी तरह शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, बुनियादी सुविधाएं जैसे विषय राज्य के होते हैं। ऐसे विषयों की संख्या करीब 65 हैं जिनपर निर्णय का शिकार राज्यों का होता हैं। ये राज्य सूची कहलाते हैं। जबकि दोनों से अलग एक समवर्ती सूची की भी व्यवस्था हैं। जिस सूची में संबंधित विषय पर संघीय सरकार और राज्य सरकारें साझा रूप से कानून बना सकते हैं। इसे तीसरी या सातवीं सूची के नाम से जाना जाता है। पहले इस सूची में 47 विषय थे। वर्तमान में इसमें 52 विषय हैं ! 1976 में संविधान संशोधन के बाद इस सूची को जोड़ा गया है।
लोकसभा के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी और कानून विशेषज्ञ ने मीडिया को बताया कि राज्यों के पास कोई विकल्प नहीं है, उन्हें संसद की ओर से पारित कानून को लागू करना होगा। जहां तक राज्यों की शिकायतों का सवाल है, वे हमेशा सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि उनके नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो वे कोर्ट जा सकते हैं। ऐसे में साफ़ हैं कि क्षेत्रीय पार्टिया अपने राजनीतिक हित और वोटबैंक को साधने के लिए ही इस कानून का विरोध कर रहे हैं यद्यपि उनके पास इस कानून के खिलाफ कोर्ट जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं हैं। इस कानून को या तो संसद द्वारा रद्द किया जा सकता हैं या फिर संवैधानिक त्रुटि होने पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा या फिर स्वयं राष्ट्रपति इसपर कोई फैसला ले सकती हैं। यह कानून विशुद्ध रूप से से संघ की सूची में शामिल हैं।
हालांकि इस वास्तविकता को राज्य की सरकारें और क्षेत्रीय पार्टिया भी समझती हैं। यही वजह हैं कि सीएए कानून के खिलाफ केरल के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, एनजीओ रिहाई मंच और सिटिजनन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन और कुछ कानूनी छात्रों सहित सीएए के खिलाफ कुल 220 याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। सीएए एक्ट को चुनौती देते हुए केरल सरकार की ओर से भी एक याचिका लंबित है। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अश्विनी दुबे ने बताया कि केंद्र जिन मुद्दों पर फैसले ले सकता है, उनमें पूर्ण स्पष्टता है। राज्यों के पास केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए कानूनों को रद्द करने की शक्ति नहीं है। (kab lagu hoga caa kanoon) जो राज्य सीएए का विरोध कर रहे हैं, संविधान के अनुरूप ऐसा करने की उनके पास कोई शक्ति नहीं है।